जो मिल नही सकता उसका जिक्र ही कैसा ,
जो साथ में है अपने उस से पर्दा फिर कैसा |

छुपाना क्यों , किससे हकीकत - ए - आरजू ,
सुख - दुःख है गर जिंदगी तो भ्रम फिर कैसा |

फुटपाथ में भी लगती है आरजूओं की बोली ,
ख़्वाइश कह गया कोई तो हैरान होना फिर कैसा |

बंजर भूमि को देख उदासी लेती है झपकियाँ ,
गाँव से शहर आया इंसा तो गिला फिर कैसा |

ख्वाबों से मिलती है अगर तासीर - ए - जिंदगी ,
जहन में ख़्वाब सज़ा लिया तो गुनाह फिर कैसा |