रोष

Photo: रोष 

माँ की कोख , लुट गई ,
इंसानियत घुट के , रह गई |
कुछ कमजर्फ लोगो ने ,
ये घिनौना , कृत्य कर डाला |
बच - बच के थी , चल रही ,
खुद को , साबित भी कर रही |
फिर भी न जाने , दरिंदगी ने , 
बे - वजह , क्यों जुर्म ढा डाला |
उठा अब हाथ में भाला ,
लगा अब नार तू नारा |
उठाये उंगली जो आन पर  ,
तो लगा उसको किनारा |
बहुत हो गया अब सम्मान ,
इंसा बन गया हैवान |
अब जमीं में फिर से 
दुर्गा का अवतार चाहिए |
उतार , सीने में खंजर ,
तौबा करने लगे , जन - जन |
तू इस अंदाज़ से ,
आँखों में सबके फिर , खौफ उतार दे |
त्राहि - त्राहि की होने लगे गूंजन 
सहम जाये हर एक मन ,
दिखा कुछ ऐसा जलवा की ,
हर दिशा में जय जयकार हो जाये |

माँ की कोख , लुट गई ,
इंसानियत घुट के , रह गई |
कुछ कमजर्फ लोगो ने ,
ये घिनौना , कृत्य कर डाला |
बच - बच के थी , चल रही ,
खुद को , साबित भी कर रही |
फिर भी न जाने , दरिंदगी ने ,
बे - वजह , क्यों जुर्म ढा डाला |
उठा अब हाथ में भाला ,
लगा अब नार तू नारा |
उठाये उंगली जो आन पर ,
तो लगा उसको किनारा |
बहुत हो गया अब सम्मान ,
इंसा बन गया हैवान |
अब जमीं में फिर से
दुर्गा का अवतार चाहिए |
उतार , सीने में खंजर ,
तौबा करने लगे , जन - जन |
तू इस अंदाज़ से ,
आँखों में सबके फिर , खौफ उतार दे |
त्राहि - त्राहि का होने लगे गूंजन
सहम जाये फिर हर एक मन ,
दिखा कुछ ऐसा जलवा की ,
हर दिशा में जय जयकार हो जाये |