अपनी - अपनी सोच

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राह में सफर तो सब , करते हैं साथ - साथ 
धर्म के नाम पर , जाने फिर क्यु बबाल है |

धीरे - 2 बना रहे हैं लोग , मुझसे दूरियां 
मेरी ऊँचाइयों का , क्या ये पहला पड़ाव है |

मंजिल की और बड़े जब , तो सब हम ख्याल थे 
अब न जाने क्यु , और किस बात पर तनाव है |

मुश्किल से डगर में , मिलते हैं कभी - कभी 
पर हमने सुना है , कि दोनों में मनमुटाव है |

कुछ लोग थे ऐसे , जिन पर हमें एतबार था 
लगता है उन लोगों का भी अब , खाना खराब है |

कुछ का कहना है , कि गरीबी कुछ और साल है 
हमें तो है लगता ये उन सबका , ख्याली पुलाव है |

सिर्फ एक आह


वो भाग गई , वो भाग गई 
हम न कहते थे वो भाग जायेगी |
इस शोकाकुल शब्द ने जगा दिया हमें 
कितने दुःख कि बात थी 
पर उस शोर में दर्द नहीं .....
एक खुशी थी , एक मज़ा था 
किसी के दर्द में खुश होने की खुशी 
पता चला बस्ती से एक लड़की लापता है 
पर कोई नहीं जानता कि वो कहाँ है ?
हर निगाह उसे खोज रही है
उसके घर कि ख़ामोशी ...
उसके खो जाने का बहुत बड़ा सबूत है |
हाँ रपट लिखवाई गई है |
कार्यवाही भी चल रही है ,
पर मुन्नी का कोई पता नहीं |
घर वाले इस बात से बेखबर नहीं हैं  |
मुन्नी के दर्द को उन्होंने करीब से महसूस किया है |
उसके आगे घर के हालात कभी छुपे कहाँ थे ?
एक - एक निवाले के लिए इंतज़ार करना
कभी खाना , कभी भूखे सो जाना
हर सुबह जीना और हर रात मर जाना
पिता को अपने ब्याह कि फ़िक्र में ...
पल- पल मरते देखा था उसने
हाँ सच कहते थे लोग कि वो गाँव से भाग गई
पर सच इतना नहीं है ...
सच तो ये है कि वो सिर्फ गांव से ही नहीं
बल्कि इस जहान से भाग गई थी ...
अपने नाम का निवाला कम कर ...
पिता की चिंता को कम करने के लिए |

अंदाज़ अपना - अपना



बड़ा दिलकश सा अंदाज़ , है ये तेरा
बातों - बातों में हमको , रिझाना तेरा |

कभी पलकें झुकना , कभी पलकें उठाना
ये आँखों- आँखों में ही मुस्कुराना  तेरा |

जुबाँ से कुछ न कहना , बस खामोश रहना
ये वजह - बेवजह यूँ हमको सताना  तेरा |

कभी दूर हमसे जाना कभी पास मेरे आना
ये बात - बात पर यूँ इतराना तेरा |

चल छोड़ ये नजाकत कहीं कर न दे बगावत
ये रह - रहकर हमपे सितम ढाना तेरा |