अपने परिचय से अनजान


सबका परिचय पाना चाहता है दिल 
खुद अपने परिचय से घबराता है दिल 
कितना झूठ , कितना धोखा , कितनी बईमानी
है हममे ........
हाँ इस पैमाने को अच्छे से जानता है दिल 
शायद इसलिए खुदको मिलने से घबराता है दिल 
मंदिर में जाता है ...
मस्जिद में भी जाता है ...
गीता और कुरान में भी दिल लगता है 
पर अकेले बैठने से बहुत घबराता है दिल 
इंसान से मिलता है ...
ईश्वर को पाना चाहता है ...
पर खुद से मिलने से अक्सर डर जाता है ये दिल
क्युकी खुद को बहुत अच्छे से जानता है दिल
हाँ इसीलिए यहाँ - वहाँ भागता फिरता है दिल |