सत्य से परिचय




सुबह का सूरज शाम को ...
छत की मुंडेर से , फिसलता हुआ ,
आंगन में जो ठहरा |
पूर्व से दामन छुडाता हुआ ,
पश्चिम में जा उगा |
जीवन के पहलूँओं को समझना ,
इनता भी मुश्किल नहीं |
जीवन का सत्य , जीवन देकर
लम्हा - लम्हा समेटते जाना है |
हमारी उपलब्धियां , हमारे जीने का ठंग
जिंदगी सब कुछ धीरे - धीरे समझा देती है |
जुड़ते जाते हैं जैसे - जैसे संबंधों के डोर से ...
छुटना लाजमी है , ये बात बखूबी जहन में डाल देती है |
अकेले थे अकेले ही हमको जाना है ...
विधि का विधान पल - पल समझाती रहती  है |
फिर रह जाता है सिर्फ एक खाली शरीर
अकेला जर्जर हिलता हुआ ...
तब हाथ बढाकर दूर खड़े समय को
हमारा हाथ थमा देती है |

8 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

कड़वा है मगर सत्य है....सामना तो करना होगा...

बहुत अच्छी रचना..
सादर
अनु

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कोई सहारा तो होता है..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

जीवन का सत्य , जीवन देकर
लम्हा - लम्हा समेटते जाना है |

विजयादशमी की हादिक शुभकामनाये,,,
RECENT POST...: विजयादशमी,,,

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सच को कहती अच्छी रचना

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

कभी कभी किसी सहारे के बिना इस जिंदगी को काटना अधिक जरुरी है.....

Ramakant Singh ने कहा…

कडुवा मगर सच जीवन को बयां करती

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

जीवन की हकीकत
बहुत सुंदर

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सुन्दर भाव.