सिर्फ पैसा



कहीं एक - २ आने का हिसाब मांग रही पैसा |
कही खुद को संभाल पाने में असमर्थ है पैसा |

कहीं भूखे बच्चे को  रुलाकर सुला रही है पैसा |
कहीं जश्ने  जिंदगी पल - पल  मना रही पैसा |

कहीं झोलियाँ भर २  के खुशियां लुटा रही पैसा |
किसी आँगन में सिर्फ मातम मना रही है पैसा |

दर्द कि इंतहा हर बार बिन पैसे के दम तोड़ रही |
कहीं पैसों के बीच खुदको न संभाल पा रही पैसा |

कही मौन रहकर अपनी अस्मिता लुटा रही पैसा | 
कहीं हवस कि आग में बे - वजह लुट रही है पैसा |

कोई गलत काम कर आसानी से कमा रहा  पैसा |
कहीं  पसीने कि कीमत भी न चूका पा रही  पैसा |

कहीं बेशुमार दर्द तो कहीं खुशियाँ लुटा रही  पैसा |
फिर भी हर वर्ग में अपना सिक्का जमा रही पैसा |

13 टिप्‍पणियां:

vidya ने कहा…

सच है..
पैसा बोलता है..
सार्थक रचना..
सादर..

vidya ने कहा…

बुरा ना माने तो अगर आप पैसे को पुर्लिंग की तरह लिखें तो??
यानि "रही पैसा"..के स्थान पर "रहा पैसा " कर के देखें..
कृपया अन्यथा ना लें..
क्षमा चाहती हूँ..

सादर..

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

पैसा कुछ है या सब कुछ ये प्रश्न और इसके तमाम उत्तर हमेशा बने रहेंगे।

आपने बहुत ही अच्छे से अपनी बात काही है।

सादर

vandana gupta ने कहा…

बिल्कुल सच कहा पैसे के खेल निराले

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सब पैसे की माया है ...

विद्याजी के सुझाव पर गौर करें

कमल कुमार सिंह (नारद ) ने कहा…

पैसे की खनक कल के चर्चा मंच पे भी रहेगी ,

सादर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चित्र शब्दमय, शब्द चित्रमय..

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

saarthak prastuti!!!!

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

right :-)

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

अब तो केवल रुपये मांग रही है पैसा, आने दो आने की बात इतिहास हुई:)

मेरे भाव ने कहा…

खूबसूरत कविता...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कहीं भूखे बच्चे को रुलाकर सुला रही है पैसा |
कहीं जश्ने जिंदगी पल - पल मना रही पैसा |

जाने ये कैसा विरोधाभास है.... गहन अभिव्यक्ति

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

पैसे का खेल निराला है...