बीते लम्हों से सजा नया साल




जानते थे वो न रहेगा साथ
मेरे इस छोटे से  घरोंदे में
फिर भी उसकी खातिर
दरवाजे थे खोल दिए मैंने |

वो चलता रहा दूर तक
अपनी ही खुमारी में
लुटाता रहा खुद को
वक्त का रूप धर - धरकर |

कर चूका था वादा
सफर में साथ चलने का
बहुत रोया अहसासे जुदाई को
याद करकर के  |

हाँ था दिल में  प्यार
इसलिए कुछ कह नहीं पाया
अब कहता भी क्या वो तो था
अब बीते वक्त का एक साया |

थमा गया मेरे  हाथ में
अब अपने ही नए एक रूप को
चला खुद को बीता कल कह
आया चुपके से फिर
नए साल का रूप धरकर |

मेरे सभी सम्मानित मित्रों को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें |