मौसम का सुहाना साथ




मौसम न जाने क्या , साजिश है कर रहा  |
हर तरफ घनी रात का , दामन पसर रहा |

चाँद की चांदनी भी ,  मध्यम है पड़ रही  |
मानो कोहरे की , अब बारात निकल रही |

आसमान में बादल ऐसे , बन - बिगड रहें |
हमसे कोई बात कहने को हों वो तरस रहे |

महसूस होने लगी वही , सिरहन की रात है |
बारिशों के पाँव बंधी घुंघरुओं की आवाज है |

पेड - पौधे बदलने लगे अब  नई पोशाक है |
पहाड़ों को मिली श्वेत चादर की सौगात है |

अजब  मौसम अब मेरे देश का है हो रहा |
मैं कर रही हूँ सफर वो मेरे साथ चल रहा |

बदला - बदला सा इंसान



आँगन की खोज थी मकान मिल गया |
नया शहर तो बिन आँगन के बन गया |

देखो घर कितनी जल्दी है सिमट गया |
रिश्तों की गर्माहट को भी न सह सका |

झरोखों से अब कोई यहाँ झांकता  नहीं |
झत जैसी चीज़ का तो नामोनिशां नहीं |

अपने - अपने जेल में सब कैद हुए है ऐसे |
अपने गुनाह की सजा सब मंजूर हो जैसे |

बाहर की दुनिया से कोई सरोकार ही नहीं |
घर में रहता है कौन इसकी भी खबर नहीं |

तमाशाइयों सी जिंदगी है बनके रह गई |
सबकी आपस में ही है जोरदार ठन गई |

अब किसीसे किसीको न कोई गिला रहा |
जीने का नया सिलसिला जो है चल पडा |

अब इंतहा भी एक हद से है गुजरने लगी |
लो तारीखे अंत अब करीब  है आने लगी |