अँधेरी रात का साया


वो गुनगुनाती  गज़ल , वो मदहोश  रातें  |
तेरे - मेरे मिलन की , वो दिलकश बातें   |

न तुमने कहा और , न कुछ हम कह सके |
ख़ामोशी में गुजरी , तमाम रगिन सदाएं  |

सोचा था रात का , हर एक लम्हा चुरालूं  |
उसको पिरोकर फिर , एक गजरा बनाऊं |

तेरे गेसुओं को , महकते फूलों से सजाकर |
हो जाऊं फ़िदा , फिर तेरी हरएक अदा पर  |

पर रात के अँधेरे  ने , मंजर ऐसा बना दिया |
मेरे - तेरे दरमियाँ कोई , आके था ठहर गया |

पलक उठाके  मैंने , उसका दीदार जो किया |
वो कोई और नहीं , वो तो साया था  चाँद का |

वो हादसा जहन में , मेरे कुछ ऐसे उतर गया |
चांद तो चला गया , पर वक्त वही ठहर गया |

अब तक भी न , मुझसे  वो पल संवर सका |
वही बेकरार रातें और चांदनी का संग मिला |

हाय गरीबी



बिन पानी मछली , तडपती है जैसे  |
भूख से तडपती है वैसे , रूहे गरीबी  |
इंसा की ,  इंसानियत को परखकर  ,
डूबती नाव की आस , लगाती है गरीबी  |
सागर में ज्वार जैसे , हिलोरे है लेता |
वैसे पेट में आग , लगाती है गरीबी |
जुबाँ तो हरदम उसके , साथ है रहती |
पर जुबाँ से कुछ न , कह पाती गरीबी  |
पेट की आग जब , तन - मन को जलाती |
बस आसुओं का सैलाब , बहाती है गरीबी |
बंजर धरा को देख , आसमां जब है बरसता |
तब एक सुकून दिल में , ले आती गरीबी |
सागर में बढती नैया को , देख - देखकर ,
खुद में एक विश्वास , जगाती है गरीबी |
सारे प्रयासों को , विफल होता देखकर ,
उसे ही किस्मत ... कह  देती गरीबी |
जिंदगी में अपना नाम , दर्ज करवाकर ,
अपने सफर का अंत , कर देती गरीबी |

खिलती कली




मन के आँगन में
बहारों का देखो  डेरा |

माली के चेहरे में
मुस्कराहटों का सवेरा |

चिड़िया की चहचाहट
भंवरों का प्यारा गुंजन |

तितली का यूँ मचलना
बादल का फिर बरसना |

हिलोरे लेता सागर
कलकल बहती नदिया |

चंदा का मुस्कुराना
काली रातों  का  पहरा |

सूरज की प्यारी किरणें
हवा का मंद - मंद बहना |

फूलों की प्यारी खुशुबू
सारे आलम का ठहरना |