सब जानते हैं हम


कहाँ रुकना कहाँ चलना
ये फन बखूबी जानते हैं हम |
जीवन के सफर को
तभी आसां बना पाते हैं हम |

आँधियों के रुख को
पहले से जान लेते हैं  हम |
अंजाम को उसके तभी
आसानी से झेल पाते हम |

रुख देख हवाओं का
उम्र दिए की लंबी करते हम |
सुनकर बादलों का शोर
सफर को अंजाम देते  हम |

लहरों को देखकर
नाव को सागर में डालते हम |
तूफानों की दिशा जानकर
मुंह कश्ती का मोड लेते हम |

डरकर काँटों की चुभन से
फूलों से झट मुँह मोड लेते हम |
खुशबूं का भान होने पर
लाकर उसे घर में  सजाते हम |

टूटे न कोई रिश्ता
फिर खुद को मिटाते हम |
अपने को दरकिनार रख
अपनों का घर बसाते हम |


बस एक आस


भूख से व्याकुल पेट
कुछ ऐसा रूप है धरती |
बिन पानी के मछली जैसे
रह रहकर है  तडपती |
इक  टक निहारती आँखे
किसी से कुछ नहीं  कहती |
बस नैया को पार लगने की
एक आस में ही है जीती |
सागर में  उठता ज्वार
पेट में हिलोरे जब है लेता
उसके शांत होने तक का
बस वो इंतज़ार ही  करती  |
भूख  - प्यास की आग
पेट को  इस कदर है तरसाती  |
बंजर धरती को देख आसमान
जैसे  आंसू बहाना हो चाहती  |
आस के  समंदर में ख्वाइशें
हिलोरे कुछ इस अंदाज़ से  लेती |
सागर की गोद में जैसे नैया
रह रहकर है डोलती |
सारी जुगत लगाकर भी
जब कोई बात ही  न है बनती |
तब हारकर वो इसे अपनी
किस्मत ही है समझती  |
भूख को बसाकर फिर
इस बेजान रूह में दर्द भरे सफर का
फिर वो अंत है करती |

मन



मन के आँगन में
बहारों ने डाला डेरा |

माली के चेहरे में
मुस्कुराहट का सवेरा |

प्यारी सी कली
कभी चंचल , कभी मौन
होकर है पलती   |

न छूना इसे
ये तो हररोज एक नए
रूप में है सजती   |

जब आने लगी बहारें
महकने लगा फिर गुलशन |

चिड़ियों की चहचहाहट
भंवरों का प्यारा गुंजन |

तितली का यूँ मचलना
बादल का फिर बरसना |

हिलोरे लेता हुआ सागर
कल - २  बहता नदिया का जल |

काली रात का  देख पहरा
चंदा का मुस्कुराना |

सूरज की प्यारी किरणें
हवा का मंद - मंद बहना |

फूलों की महकती खुशबु
सारे आलम का फिर ठहरना |

करवट लेता देखो  पल - पल
दर्द उठता है तब रह - रह

शांत लहरों में भी
ज्वार लाता है सागर   |

फूल खिलने से पहले ही
तब  उड़ा ले जाती है हवाएं |

सूरज की तेज तपन
जला देती है हर शय को  |

कभी चंचल कभी मौन रहकर
हर अंदाज़ में पलता ये मन |

कभी मेरा - कभी तेरा
देखो कहता है ये हरपल |

रचनाकार की रचना

Fabulous Nature Pictures
जब - जब बहार है आती |
गम के सारे बादल है ले जाती  |
जब चारों तरफ  सन्नाटा है छाता  |
हमसे वो  कुछ तो  है कह जाता  |
सबके हिस्से का है सूरज |
सबके हिस्से में आते है सुख - दुःख |
फिर क्यु नदिया सी रोती है ये आँखे ...
क्यु नहीं कह देती हंसके सारी बातें  |
बादल बनके बरसकर
फिर क्यु अपना आस्तिव है रचती |
क्यु छाता है ये अँधेरा
किससे मिलने जाता है छुप - छुपकर |
और उगते सूरज की रौशनी में
क्यु शर्माता है वो रह - रहकर |
नदिया की कलकल धारा सा
क्यु बहता है सबका मन |
राह में मिलते फूल - काँटों को
क्यु समेटता है हर पल |
धुल - मिटटी का श्रृंगार करके
क्यु मचलती है ये पवन हरदम |
कभी मंद गति से बढती
तो कभी क्यु ढहा देती है सबकुछ |
हाँ कोई तो  है इसका रचेता
वही करवाता है हमसे ये सबकुछ |