दोस्ती



इन हवाओं से अब दोस्ती हो गई थी  |
लगता है दिए की उम्र लंबी हो गई थी |

अभी तो इसमें कई और  रंग बचे थे  |
तेरी तस्वीर कबकी पूरी हो चुकी थी  |

मेरी सिर्फ जंजीरे ही बदली जा रही थी |
और मैं समझी थी की रिहाई हो रही थी |

जबसे जाना था मंजिल का पता मैंने |
मेरी तो रफ़्तार ही  धीमी हो गई  थी |

बहुत बार चाहा था फिर से हंसना मैंने |
पर उदासी तब और गहरी हो गई  थी |

बहुत ही करीब चली गई थी चाँद के मैं |
उसकी रौशनी में थोड़ी धुंदली हो गई थी |

चल तो रही थी अब साथ - साथ उसके |
पर अपने  परिचय से अंजान हो गई थी |

बहुत कशमकश होती थी जिंदगी में लेकिन |
फिर भी दोस्तों के साथ खुशगवार हो गई थी |

जवाब अब भी बाकि


बह जाने दो  इन अश्कों को न रोको इन्हें   ...
जो रोज बह जाने  की जिद्द तुमसे करते हैं |
जुबाँ से जब ये कुछ  कह नहीं पाते ...
तो आँखों से होकर गुजर जाने को तडपते हैं |

बिछडे हुए तो  हमें सदियाँ कई बीत गई |
यादों का अहसास  दिल में अभी बहुत बाकि है |
अब पहली सी वो बातें - मुलाकाते तो नहीं ,
पर उन लम्हों की कसक थोड़ी - थोड़ी बाकि है |

अब न ही कोई उम्मीद न आस रही बाकि है |
ये  तो सब चर्चाएँ ही हैं जो रोज सर उठाती है |
किसी के कहने से बात कब  कहाँ बनी है कभी |
अब तो खुद से खुद को समझाना ही बाकि है |

ये आंसुओं का अब रह गया एक  दरिया है |
इन्हें न अब रोककर बेबाक बहा देना बाकि है |
अभी तो दिल में दबी बहुत सी बात बाकि है |
सवाल बहुत हैं जो तेरे - मेरे दरमियाँ बाकि है |

अभी न खत्म  होगी गुफ्तगू रात अभी बाकि है  |
अभी तो हमारे बीच में कई राज़ और बाकि हैं |
अभी इसको निभाने की कसम कहाँ खाई है मैंने ,
अभी तो दोस्ती निभाने की  सौगात बाकि है |

अभी आसमां में चमकता छोटा सा तारा हूँ मैं  ,
जिंदगी में करने मुझे  बहुत काम बाकि है |
कैसे भूल सकती हूँ  मैं  उन हसीं बातों को ,
जिनके सवालों के जवाब देने अभी बाकि हैं |

कल्पना


सुनो हम चलेंगे साथ मिलकर के ऐसे |
ऊपर गगन में बादल विचरतें हों जैसे |
तुम देखना वो मिलन होगा ही ऐसा |
किसी ने अब तक न देखा हो जैसा |

सागर की लहरें भी थम जाएँगी ऐसे |
उनके मिलन की जुगत लगाती हो जैसे |
खुद की लहरों को खुद में समेटेगी ऐसे |
क्षितिज पर देख मिलन ठहरी हो जैसे |

सारी कायनात थम जायेगी फिर ऐसे |
उनके मिलन का जश्न मनाती हो जैसे |
भंवरों की गुंजन तब गीत गायेगी ऐसे |
खुद के होने का संकेत दे रही हो जैसे |

पंछी की उड़ानें  भी थम जायेगी ऐसे |
पैरों में उनके जंजीरे डाली हों जैसे |
नदिया की कलकल शोर मचायेगी ऐसे |
सागर से मिलने को हो वो भी बैचेन जैसे |

ये मिलन बस एक कल्पना नहीं है |
धरा और गगन का अहसास भी है |
उसके मिलन से सृष्टि थम जायेगी |
तभी तो क्षितिज पर वो मिलते है ऐसे |