दोस्ती की परिभाषा


वो तो जन - जन के दिल में बसता है |
प्रेम से उसका नाम हरपल जुड़ता है |
वो हर दिल की धडकन में रहता है |
उसके प्यार का अंदाज़  निराला है |
उसको तो  न कोई जान पाया है |
जिसमें  पाने की न कोई चाहत है  |
देह से उसका कोई सरोकार नहीं |
तभी वो हर गोपी के मन में बसता है |
बदले  में कोई चाहत न रखता है |
उसके प्यार में इतनी गहराई है |
जिसमें  अपनापन ही सजता है |
उसने न किसी को खुद से बाँधा है |
ये तो राधा - मीरा का प्यार बताता है |
उसका मन  गहन प्यार दर्शाता है |
यही तो प्यार की निर्मल भाषा है |
ये मित्र - सखी के प्यार को दर्शाता है |
जिसमें समर्पण हो ये सिखलाता है |
इनके  प्यार में  न कोई  आशा है |
तभी ये बिन खौफ के आगे जाता है |
यही तो कृष्ण का रूप समझाता है |
यही सच्ची दोस्ती की परिभाषा है |
जो बिना शर्त के ओरों का हो जाता है |
तभी तो वो सबका कान्हां कहलाता है |

एक दूजे बिन सब अधूरे


तितली  ने कहा सुनो सखी ये है आहाट  कैसी ?
मैंने कहा अरे ये तो है भवरों के गुंजन  जैसी |

फूल कि मुस्कान में न जाने क्या बात थी ऐसी |
जैसे उनको  पास आने का निमंत्रण हो देती |

तितली बोली फूल से अभी न तू इतना इतरा |
तेरी पंखुड़ी में बैठकर वो तुझको देंगे  बिखरा |

प्यास बुझा  वो सब चले जायेंगे बारी - बारी |
तुम पलभर खुश होके रह जाओगी हारी - हारी |

पाने की चाहत  में खुद को  गँवा लोगी ऐसे तुम  |
जाती हुई  आहाट को कहाँ पकड़ रख लोगी तुम   |

चंदा  भी बातें सुनकर हंस हंस के झट से बोला |
सृष्टि के नियम को तुम पर न किसी ने खोला |

सबको एक दूजे में कुछ पाना है कुछ खोना है |
इसी अंदाज़ से हमको आगे को चलते जाना है |

ऐसा  सुनकर दोनों अपने आप में ही सिमट गई |
कुछ न कहा किसी से जैसे अब सब समझ गई |

इंतज़ार


वो चौराहा  ही तो था ,
जहाँ हर तरफ आना- जाना था |
एक पल भी कोई न ठहरा था वहाँ
बस दौड़ती हुई सी जिंदगी
हर पल कोई नया चेहरा
कोई किसी से मुखातिब ही नहीं
एक बैगाना सा चौराहा
हाँ उसी चौराहे में
वो बार - बार आती है  |
किसी के इंतज़ार में
दिन - रात बिताती है  |
हर निगाह उससे  सवाल करती है |
पर उससे वो बेखबर सी रहती है  |
अपने हाथों  में उसकी निशानी लिए
उसमें  ही उसका अक्स खोजती है ,
माथे पर न कोई शिकन , होठों पर
मिठ्ठी मुस्कान लिए जीती है |
उसकी बैचेन रूह उससे सवाल करती है |
वो खुद उन सवालों का जवाब बनती है |
जिंदगी के हसीं पड़ाव पर भी ,
वो तन्हा ही सफर तय करती है |
न था कल , न है आज कोई
ये कहकर वो खुद को
गुलजार करती है |