जिंदगी में हाँ - हाँ करते रहने में
कितना अच्छा होता है |
सब कुछ सहज और सरलता से
चलते रहता है |
न ही तकलीफ न ही कोई दर्द
सिर्फ हाँ और हाँ ?
पर उसमें अपना वजूद
अपनी आत्मा
कहाँ दब जाती है ,
इसकी तो किसी को
खबर ही नहीं होती |
दूसरे का व्यक्तिव तो सिर्फ
हाँ - हाँ सुनने का
आदि जो हो जाता है |
और जिस दिन ...
ना शब्द जुबान पर आता है
एक तबाही सी ले आता है
जीवन तो मानों
रुक सा जाता है |
पर उस दिन ... इंसा का
एक नया जन्म होता है
पर वो अपने साथ बहुत से
विवाद और परेशनियों को भी
साथ लाता है
ये भी सच है कि वो
उसके लिए एक हिम्मत
बनकर आता है |
जीवन को अपनी तरह से
जीने का अंदाज़ सीखता है |
वो खुद के लिए हाँ - हाँ
और दूसरे के लिए
ना - ना हो जाता है |
वही ' ना ' जिंदगी के
हर पहलुओं से
हमें मिलाता है |
हमारी एक छोटी सी ' ना '
हमारे व्यक्तित्व को ही
बदल जाता है |
इसलिए हाँ - हाँ
कहना तो अच्छा है
पर ना - ना भी बुरा नहीं |