हाँ - हाँ ही काफी नहीं


जिंदगी में हाँ - हाँ करते रहने में
कितना अच्छा होता है |
सब कुछ सहज और सरलता से
चलते रहता है |
न ही तकलीफ न ही कोई दर्द
सिर्फ हाँ और हाँ ?
पर उसमें  अपना वजूद
अपनी आत्मा
कहाँ दब जाती है ,
इसकी तो किसी को
खबर ही नहीं होती |
दूसरे का व्यक्तिव तो सिर्फ
हाँ - हाँ सुनने का
आदि जो हो जाता  है |
और जिस दिन ...
ना  शब्द जुबान पर आता है
एक तबाही सी ले आता है
जीवन तो  मानों
रुक सा जाता है |
पर उस दिन ... इंसा का
एक नया  जन्म होता है
पर वो अपने साथ बहुत से
विवाद और परेशनियों को भी
साथ लाता है
ये भी सच है कि वो
उसके लिए एक हिम्मत
बनकर आता है |
जीवन को अपनी तरह से
जीने का अंदाज़ सीखता है |
वो खुद के लिए हाँ - हाँ
और दूसरे के लिए
ना - ना हो जाता है |
वही ' ना ' जिंदगी के
हर पहलुओं से
हमें मिलाता है |
हमारी एक छोटी सी ' ना '
हमारे व्यक्तित्व को ही
बदल जाता है |
इसलिए हाँ - हाँ
कहना तो अच्छा है
पर ना - ना भी बुरा नहीं |


खबर ही न हुई


दुनिया कब सिमट गई
खबर ही न हुई |
वो घर के बड़े - बड़े आँगन ,
जहाँ बैठ कर सब
अपनी कहते और सुनते थे
किसी को मनाते
और खफा हो जाते थे |
उसने कब छोटा सा
रूप ले लिया
पता ही न चला |

आँगन पर वो तुलसी का पौधा
बच्चों का चारों तरफ
भागते रहना |
सहेलियों की वो प्यारी बातें
आम की चटनी और आचार
की सदा बहारें
कब सिमट गई
पता ही न चला |

पडोसी का एक दूजे के
लिए वो प्यार ?
एक दूजे के सुख - दुःख
में शरीक होते वो लोग |
रिश्ते - नातों से मिलने के
वो खूबसूरत पल |
कहाँ खो गया
पता ही न चला |

करुणा , दया और सत्कार
जीत की हार
आत्मा का वो विस्तार
कहाँ सिमटता चला गया
पता ही चला |
वो आँगन कहाँ खो गया
पता ही न चला |



अब क्या मैं लिखूं


आज  सोचा फिर , मैं कुछ और लिखूं |
फिर बोला दिल , अब क्या मैं लिखूं |

किसी गीत के कोई बोल लिखूं |
या दिल की  ऐसी बात लिखूं |

अपने सपनों की सौगात लिखूं |
या ओरों के  ज़ज्बात लिखूं |

कुछ उनकी सुनूं या समझाऊँ |
या ऐसे ही आगे मैं बढ़ जाऊँ |

सूरज की किरणों की सौगात लिखूं |
या आसमान  का विस्तार लिखूं |

उन बीते लम्हों की बात लिखूं |
या अब जो है अपने पास लिखूं |

मैं कृष्ण की लीला का अंदाज़ लिखूं |
या पुरषोतम राम का त्याग लिखूं |

मैं हँसते बच्चे की किलकार लिखूं |
या ढलते यौवन के जज्बात लिखूं |

मैं  सावन की वो फुहार लिखूं |
या रिमझिम बारिश की रात लिखूं |

आज तुम ही बताओ अब मुझसे  ,
की मैं फिर से किसकी बात लिखूं |

मेरा भारत महान


मानव का मानव के भीतर जब न हो सम्मान ,
फिर कैसे फूटेगा  मुख से कोई सुन्दर गान |

चारों तरफ जग में फैला हो जब घोर अंधकार ,
तो करो विनय सूरज से करवा दे सुबह का भान |

खिंच दिलों में मानव के , कड़ी कर दो ऐसी  दीवार ,
करो  कुछ ऐसा  कि करें सब एक दूजे को स्वीकार |

तुम ही देश के रखवाले , तुम ही हो पहरेदार ,
तुम हो देश के रक्षक , तुम से ही तो है सरकार |

करो कुछ ऐसा  कि पलने लगे सबके दिल में प्रीत ,
सबकी  वाणी  गाने  लगे जन - गन - मन का गीत |

देखो बदनाम न करना  दोस्ती कि ये  रीत ,
कोई तुमसे ये न कहे  कैसे हो तुम मेरे मन मीत |

जागो भारत जागो ये अपने देश कि  है प्यारी पुकार ,
हो जाओ मिलकर एक जो है तुमको भी इससे प्यार |

न रहे कोई दुश्मन भर दो सबके दिल  में संगीत ,
सब  इसमें में ही खो जाये न रहे राग - द्वेश का गीत