इतना डर
इतनी बैचैनी
क्यु डरती हो ?
किससे डरती हो ?
यही तो है वो हिंदुस्तान
जिसमें ऊँची - ऊँची
पर्वतमालाएं बिखरी पड़ी हैं |
बर्फ से ढकी चोटियाँ
कल - कल बहते झरनें
सब अपनी जगह पर हैं |
फूलों से लदी वादियाँ
हाथ फैलाये तेरे दीदार को खड़ी हैं |
पर तुम्हारी आँखों का दर्द
इन्हें धुन्दला कर रहा है |
देश में फैली ये दहशत
आँखों की जुबां से बता रहा है |
दंगों से आहात जन - जन की
दास्ताँ सुना रहा है |
की सच में
बेख़ौफ़ नहीं हैं गलियां |
खेत खलियानों में
हर जगह
डरे सहमें से हैं लोग |
तुम्हारा डर हवाओं से
कुछ इस तरह से कह रहा है |
सुनो , देखो मुझे यूँ न छुओ
तुम्हारी छुअन भी
मुझे डराती है
तेरे साथ न होने का
एहसास सा दिलाती है |
फूलों की खुशबूं में भी
अब बारूद की महक आती है |
इन आँखों को
आज भी उसी एहसास का
इंतज़ार है |
सबको अपना हक मिले |
सबको अपना रूप मिले |
सारी प्रकृति खुशनुमा हो जाये |
इन सब एहसासों के बीच
आज भी आस बाकि है |
मैं जानती हूँ
वो दिन फिर से
पलट कर आएगा |
जब हवाओं का स्पंदन
मुझे फिर से
मदहोश कर जायेगा |
सारा जन जाग उठेगा
ये मेरा देश मेरा देश गायेगा |