हवाओं का रुख

मैं न आ आई  थी तेरे दर 
न जाने राह कैसे मुड गई |
चल तो रही थी , चाल थी धीमीं ,
न जानें गति कैसे बढ गई |
राह अनजानी सी  थी ...
पर पाने की चाह ... न जाने 
क्या कमाल कर गई |
चाँद सूरज के साथ चलकर  ...
हम  सफर करते  गए |
अब भी न जान पाए  
की हमको तुम कैसे मिल गये |
तन की किसने सोची ...
यहाँ तो मन ही थे मिल गए |
भान ही  न पाए हम ,
कौन सी दुआ कब असर कर गई 
न आये  थे   कुछ मांगने   
न जाने ये दिल  कैसे जुड़ गये  |
कुछ क्षण को सारा आलम 
एकदम से ठहर गया |
दो पल का आराम ...
हमारी आँखों में  सपना नया भर गया |
देख मेरे पंख ...हवाओं ने भी  ...
अपना रुख यु बदल  दिया  |
ड़ाल तो छुम गई ...
पर ड़ाल का पंछी हवा में उड़ गया |
मैं न आई थी , तेरे दर 
रास्ता ही खुद मुड गया |



''लोकतान्त्रिक देश ''


          
भावना हो तो कोई भावनाओं  की कदर करेगा |
निराशा में  बड़ने वाले क़दमों  को रोक सकेगा |
मेहनतकश हाथो को चूमेगा... 
मासूमो को फाँसी मै चड़ने से रोक सकेगा |
दुल्हन को प्यार और सम्मान दे कर ...
उसे घर की चोखट  पर प्यार से बसने देकर ,
घर की देहलीज़ को फिर वो रौशन करेगा |
 दुसरो की सुनकर फिर वो अपनी कहेगा |
सही और गलत का वो इंसाफ करेगा |
अपने देश की ज़मी को फिर से  गुलज़ार करके ,
जर्रे जर्रे में  वो रौशन उसका नाम करेगा |
इन्सान के दिल में देश के लिए प्यार भरेगा |
सबको आपस मिलकर जीने को कहेगा |
मूलक को मूलक से जोड़ने का काम करके ,
देश का वो  लोकतान्त्रिक नाम रखेगा |

मेरा साया

उदास जब हम बहुत उदास हो जाते  हैं |
किसी का हाथ थाम के ...
फिर दूर निकल जाते हैं |
कुछ उसकी तो कुछ अपनी सुनाते हैं |
नोक - झोंक के साथ फिर ...
सफ़र आगे बढ़ातें  हैं |
कभी उसे अपना तो ...
कभी उसके बन जातें हैं |
अगर फिर भी दिल न भरे तो ...
तो हम खफा हो जाते हैं |
इतना प्यारा एहसास किसी और से ...
कहाँ बाँट पाते  हैं |
किसी और को तो इसकदर  हम ...
पहचान भी नहीं पाते हैं |
कब हमसे कोई खफा और 
कब खुश है ये कहाँ जान पाते हैं |
अपने एहसासों को अपने अन्दर ही 
समेटे चले जाते हैं |
ये धुप - छाँव का खेल तो बस ...
अपने में ही चलता है |
इसलिए अपना साया ही हमें 
सबसे प्यारा लगता है |