कैसी है ये दुनियां

दर्द सीने में हो तो नगमों की जरूरत क्या है |
जिन्दगी हकीकत है तो किस्सों की जरूरत क्या है |

गर आंसूं आँख में है तो खुद ग़ज़ल है इन्सां |
ऐसे एहसास साथ हों तो शेरों  की जरूरत  क्या है |
गौर से देखो तो सूरज से बड़ी है दुनिया |
फिर भी काली अंधेरों में पड़ी है दुनिया |
राज़ को कैद किया जब - जब इन्सां ने यहाँ |
बंद तालाब में घुट - घुट के सड़ी है दुनिया |
इसको बनाने में तो मेहनत गरीबों की हुई |
फिर भी अमीरों के पाँव में पड़ी है दुनिया |
जिनकी बात मानकर सब सच - सच कहा था मैंने |
आज उसी इन्सां के पक्ष में खड़ी  है दुनिया |
सपनों के एहसास तो हैं नर्म मखमल जैसे |
कैसे गुजरेगी  सख्त पत्थर जैसी है दुनिया  |

सफ़र

बहती नदिया बनकर 
हर पल बहती ही रहती हूँ |
राह में ईंट - पत्थर के 
रोकने पर भी मैं न रूकती हूँ | 
अपने प्रवाह से उनको भी ...
साथ लेके चलती हूँ |
रुक जो मैं जाती तो प्यास 
कहाँ बुझा पाती ?
इसलिए हर पल बहती हूँ 
बहती ही  जाती हूँ |
कठिन राह से गुजर कर 
दर्द को भी गले लगाती हूँ |
अपने मिट्ठे एहसासों से 
सबकी थकन मिटाती हूँ |
हर वक़्त खुद को समर्पित कर 
लोगों की प्यास बुझाती हूँ |
अपने संघर्ष के दम से 
एक दिन सागर में समाती हूँ |
सागर की गोद में जाके 
अपना आस्तिव खोजती  हूँ |
न मिल पाने की सूरत में 
फिर मैं ऊपर उठती हूँ |
बादल से मिलकर बूंदें  बनकर 
फिर  बरसती हूँ |
बंज़र पड़ी धरती  को अपनी बूंदों 
से भिगोती हूँ |
इन्सान की प्यास को 
मिटा के उसे गले लगाती हूँ |
न कुछ पाने की चाहत में 
हर दिन खुद को मैं ऐसे सजाती  हूँ |

हैं गरीब पर फिर भी अमीर

ये जो  मिट्टी और तिनकों का घरोंदा  है |
यहाँ उन आत्माओं ने डाला खूब डेरा है |
एक तरफ बिलबिलाते
बच्चों का रोना  है |
एक तरफ बेबस माँ का घुट - घुटकर 
आंसुओं को पीना  हैं |
इनकी आँखों में न ख्वाब ,
न ही कोई सपना है |
इनको तो भूख  ने अपनी आगोश
में लेते रहना  है |
भूख -प्यास से ,
बेशक शरीर जर्जर है |
माथे में फिर भी ,
शिकन न  पल भर है |
जिन्दगी इनसे ही न जाने कयुं ...
रुसवा होती है |
सबको देती है इनसे ही ,
सब कुछ कयुं ले लेती है |
क्या गुनाह है इनका ,
जो आज ये गरीब हुए |
पेट की भूख से ही तो
आज ये फकीर हुए |
थोडा सा पाकर ही
इनके चेहरे पे रौनक आती है  |
वैसे  दिल तो  इनके भी
अमीरी दिखलाती है  |
खुदा ने ये नेमत भी
इन्हें खूब बख्शी  |
इनके चेहरे में हंसी
बेशुमार लाकर भर दी   |
अमीरी बार - बार लाख
इन्हें मुंह चिढ़ाती रहे   |
पर गरीबों के चेहरे में
शिकन न ला पाती है |
सुबह की भूख को लेकर
हर दिन वो चलते हैं |
रात को तारों की छाँव में
जाके पलते  हैं |
क्या खूब अंदाज़ है
उनके जीने का ?
कहने को जीने के लिए
कुछ भी नहीं   |
फिर भी एहसासों का 
जखीरा उनको जोड़े हुए हैं | 

तमन्ना


सच मै बेजार हो गई  ये दुनिया ...
लगता है हम इसे , प्यार नहीं करते |
रहते तो  हैं इसके  दिल मै
फिर भी इज़हार  नहीं करते |
तमन्ना  तो रखते है चाँद की
पर उसका दीदार नहीं करते |
खुशबु लेते हैं गुलाब की
मगर काँटों से प्यार नहीं करते |
सुनते तो हैं उसकी मगर
उसपे एतबार   नहीं करते |
और कहते हैं की दुनिया ... बेजार है
पर किसी का इंतजार नहीं करते  |

हाय रे ये बजट

आज बजट की तर्ज में कुछ बात कहते हैं |
ब............. बढ़ने 
ज ............ जा रहें हैं |
ट ............. टैक्स 
वैसे भी बजट और टैक्स का 
रिश्ता आशिकाना है |
तू जहां - जहां चलेगा की तर्ज पर 
महंगाई  ने प्रेमिका बन 
उसके पीछे - पीछे  जाना है |
बजट के आते ही 
अख़बारों और दूरदर्शन ने 
महंगाई  - महंगाई गाना है |
सरकार का वेतन बढ़ाके 
फिर टैक्स के रूप में 
वापस ले जाना है |
फटी कमीज़ की जेब से 
जो थोड़े बहुत पैसे बचेंगे |
वो घर के खर्चे और स्कूल की 
फीस में चले जाना है |
जब बजट और टैक्स में 
आदमी को फंसते  जाना है |
तो एक वर्ग भ्रष्ट और 
आम आदमी को दिन - रात
इसी में पिसते जाना है | 

रहमत का असर

जबसे तेरी रहमत के इशारे हमपे हो गए |
हम तो दुनियादारी से ही  न्यारे हो गए | 

मंदिर - मस्जिद के झगड़ों की बात छोड़ो |
हम तो खुद के झगड़ों से ही पराये हो गये |

रंजों गम है दूर अब कोई शिकवा गिला नहीं |
एक ही पुकार में अब हम  तुम्हारे हो गए |

मिलके जो साथ चले तो हालत ऐसे हो गए |
न रहा कोई दुश्मन सब अपने प्यारे हो गए |

खुद के भीतर जो झाँका तो खुद को ऐसा पाया |
अब तो दोस्त भी मेरे , मेरी मशाल हो गए |