कुछ पाने की चाह ...
हर वक़्त सबको निहारना
उनकी आँखों में खुद को तलाशना |
एक अकेलापन
कुछ पाने की चाह
सब कुछ था उसके पास
फिर भी एक शून्य को निहारना |
सिर्फ एक आस ...
काश मेरा भी कोई होता |
जो सिर्फ मेरी सुनता |
मुझे राह दिखाता |
रौशनी दिखी , मंजिल भी मिली |
आँखों ने ऐसी बरसात की
मानो सेलाब आ गया |
जो अब तक किसी से
न कहकर चुपचाप आँखों में कैद थी |
आज उसने सब बयाँ कर दिया |
जिसकी उसे बरसों से तलाश थी ,
उसे वो मंजिल मिल गई |
उसके सारे दर्द उन आसुओं में बह गये |
अब उसे सुकून था |
उसकी मंजिल उसके पास थी |
पर कब तक ?
जीवन है ... कहाँ ठहरता है |
वो तो मौसम की तरह हरपल बदलता है |
आज यहाँ तो कल , वहां ठहरता है |
न जाने कब करवट बदल ले ?
और फिर ये तो सफ़र है |
घडी की सुइयों की भांति टिक - टिक
टिक - टिक बस चलते ही रहना |
हरपल जिन्दगी से जुड़ा हुआ |
और इसका रुकना तो ...
जीवन का ही रुकना होगा |
इस नियम का बने रहना ही बेहतर है |