चलना ही जिंदगी

क्यूँ था उन आँखों में खालीपन 
कुछ पाने की चाह ...
हर वक़्त सबको निहारना 
उनकी आँखों में खुद को तलाशना |
एक अकेलापन 
कुछ पाने की चाह 
सब कुछ था उसके पास 
फिर भी एक शून्य को निहारना |
सिर्फ एक आस  ...
काश मेरा भी कोई होता |
जो सिर्फ मेरी सुनता |
मुझे राह दिखाता |
रौशनी दिखी , मंजिल भी मिली |
आँखों ने ऐसी  बरसात की 
मानो सेलाब आ गया |
जो अब तक किसी से 
न कहकर  चुपचाप आँखों में कैद थी |
आज उसने सब बयाँ कर दिया |
जिसकी उसे  बरसों से तलाश थी ,
उसे वो मंजिल मिल गई |
उसके सारे दर्द उन आसुओं में बह गये |
अब उसे सुकून था |
उसकी मंजिल उसके पास थी |
पर कब तक ?
जीवन है ... कहाँ ठहरता है |
वो तो मौसम  की तरह हरपल बदलता है |
आज यहाँ तो कल , वहां ठहरता है |
न जाने कब करवट बदल ले ?
और फिर ये तो सफ़र है |
घडी की सुइयों की भांति टिक - टिक 
टिक - टिक बस चलते ही रहना |
हरपल जिन्दगी से जुड़ा हुआ |
और इसका रुकना तो ...
जीवन का ही रुकना होगा |
इस नियम का बने रहना ही बेहतर है | 

दोषी कौन



ख़बरे कहती हैं हमसे की ? 
युवावर्ग  बिगड़ रहा  है | 
कितना आसां है ... यह कहना कि 
युवापीढ़ी बिगड़ रही है |
हाथ पकड़ कर चलना तो , 
उसने हमसे ही सीखा  है |
घर में  रह कर कदम बढाना , 
उसने हमसे  जाना है |
वो तो सिर्फ हमारे ही  ,
नक़्शे कदम पर चलता  है |
उसको दोषी कैसे कह दे , 
वो  हमारे  संस्कार अपनाता है |
हमसे  ही तो कुछ सीख  कर वो ... 
आगे कदम बढ़ाता है |
कुछ भी कर पाने की हिम्मत ... 
वो हमसे  लेकर जाता है |
फिर  जब अच्छी आदतों की ...
 बात जुबाँ पे हमारी  आती है |
वो सब  हमारी विरासत , 
और उनकी गलती हो जाती है |
जब ऊँगली पकड़ कर चलना , 
हमने उन्हें सिखाया  है तो ,
हाथ पकड़ कर  बढना भी तो , 
हम ही उन्हें सिखायेंगे |
क्युकी ... जिन्दगी तो एक  सफ़र है  ...
हर  उम्र में सहारे खोजती ही  रहती  है |
फिर युवा वर्ग है दोषी ?
 हम कैसे ऐसे  कह सकते हैं |
वो तो सिर्फ सही राह  की तलाश में
हरपल  आगे  बढता  है |
थामे रहेंगे हाथ अगर  तो ...
 वो कैसे दोषी हो सकता है |

प्यारा सा रिश्ता

ये प्यारा सा जो रिश्ता है |
कुछ तेरा है , कुछ  मेरा है ||

किसी  धागे से भी ये , बंधा नहीं |
फिर भी जाना - पहचाना है |
कुछ  मासूम सा , कुछ अलबेला   |
कुछ  अपना सा , कुछ  बेगाना |

ये मासूम सा जो , रिश्ता है |
कुछ  तेरा है , कुछ  मेरा है ||

कुछ  चंचल सा , कुछ  शर्मीला |
कुछ  सुख सा , तो कुछ  संजीदा |
कुछ  उलझा सा , कुछ  सुलझा सा |
मस्ती से भरा , कुछ  खफा - खफा |

ये प्यारा सा जो रिश्ता है |
कुछ  तेरा है , कुछ  मेरा है ||

कड़ी धूप मै ये , साया जैसा  |
अँधेरी रात मै ये , जुगनू जैसा  |
कभी रस्ता है , कभी मंजिल है |
बस सागर की , लहरों  जैसा है |

ये जो प्यारा सा रिश्ता है |                        
कभी तेरा है , कभी मेरा है |

ये तो सच्चे मोती , जैसा है  |
दिल की सीपी मै , कैदी जैसा है |
सबकी नजरो से , ढांप लिया |
कभी मन दिया , कभी एतबार किया |

कुछ  मेरा है , कुछ  तेरा है |
ये प्यारा सा जो , रिश्ता है ||

लक्ष्य


जागती आँखों में भी  सपने होते हैं  |
किसी के नहीं वो  सब अपने होते हैं  |
कैसे न देखें  हम उन्हें करीब से ?
वही तो जिंदगी में सबसे करीब होते हैं |

जाने उनमें ऐसी क्या बात होती है |
कुछ करने को वो बेकरार रहते हैं |
पर सपने तो सिर्फ सपने होते हैं |
करीब और दूर से बेखबर होते हैं |

हर सपनों को अपने सपनों में रखो |
हर मंजिल को अपनी बाँहों  में  रखो |
हर बार देखना जीत आपकी ही होगी |
बस  लक्ष्य को अपनी निगाहों में रखो |

फिर हर मंजिल आपकी अपनी होगी |
दिल में अरमानो कि एक ताबीर होगी |
फिर कैसे कहाँ कोई रोक पायेगा तुम्हें |
फिर हर शय में आपकी ही दरकार होगी | 

चलो बढ़कर इस ख्वाब को गले लगालो तुम |
सपनों की इस दुनियां को रंगीन बना लो तुम |
देखो हरगिज़ न  छोडना इसे पूरा होने तक |
आज अपने लक्ष्य को अभी से साध लो तुम |

माँ


माँ ... कितना एहसास है इसमें ,
नाम से ही सिरहन हो जाती है |
कैसे भूले  हम उस माँ को 
जिसने हमें बनाया है |
अपना लहू पिला - पिला कर ...
ये मानुष तन दिलवाया  है |
उसके प्यारे से स्पंदन ने 
हमको जीना सिखलाया  है |
धुप - छाँव के एहसासों  से 
हमको अवगत करवाया  है |
हम थककर जब  रुक जाते हैं |
वो बढकर राह दिखाती   है |
दुनियां के सारे रिश्तों से 
हमको परिचित  करवाती है |
जब कोई साथ न रहता  है |
वो साया  बन साथ निभाती है |
खुद सारे दुख अपने संग ले जाकर 
हमें सुखी कर जाती है |
बच्चों की खातिर वो...
दुर्गा - काली भी बन जाती है |
बच्चों के चेहरे में ख़ुशी देख ,
अपना जीवन सफल बनाती है |
उसके जैसा रिश्ता अब तक 
दुनियां में न बन पाया है  |
कितना भी कोई जतन करले 
उसके एहसानों से उपर न उठ पाया है  |
ऊपर वाले ने भी सोच - समझ कर 
हमको प्यारी माँ का उपहार दिलाया है |