हर दर्द कुछ कहता है

बहुत दूर क्षितिज के उस पार तक
खुद को निहारा |
बहुत दूर ... खुद से उसे बहुत दूर पाया |
अभी तो सफ़र शुरू हुआ है 
न जाने कितने और पड़ाव होंगे ?
अभी से कैसे जान जाती 
मंजिल का पता मैं ?
पर दिल है न ...
कहाँ ठहरता है खुद के पहलूँ में |
ये भी तो बेवफा है सबकी तरह |
पर खुद के लक्ष्य की चाह |
उसे पाने की सुलगती आग |
थक के रुक जाऊ...एसा हो नहीं सकता |
उसे पकड़ न पाऊ ...एसा होने नहीं दूंगी |
ये पुकार मेरी नहीं उस आह  की है 
जिनकी  निगाहें अब तक 
रास्ता तक - तक के थक गई है  |
जिनकी आहें बेबस हैं हमारी ही तरह |
जिनकी आँखों में अब भी कई सपने हैं |
जो किसी के दीदार में 
अब भी तरसते  है |
न जाने किसकी  धड़कन की 
और कितनी घड़ियाँ बची होंगी |
दिल तो चाहता है जाके उन्हें थाम लूँ |
कुछ ऐसा करूँ की ...
उनके एहसास को मैं बाँट लूँ |
बिना कुछ करें ये तो सिर्फ सपना है |
मेरी सोच और कलम का करिश्मा है |
दिल चाहता है ये कि ... 
मैं भी किसी एक की मसीहा बन जाऊं   |
उनके दर्द को थोडा सा ही कम कर पाऊं |
करुँगी शुक्रिया खुदा का ...
जो ऐसा कभी मैं कर पाई   |
बहुत दर्द है इस सारे जहां में
थोड़ी सी ख़ुशी देकर उनकी आँखों में
जो ख़ुशी ही मैं भर आई   | 

कैसा है ये सफर

 
बेखबर ... हर बात से बेखबर 
अपने घर , अपने माँ - बाबा के घर 
हर चीज़ पर अपना अधिकार 
सिर्फ उसका अपना संसार 
सबको हक से जवाब देती हुई 
क्या वो जानती है ,
एसा कब तक ?
ये सारी खुशियाँ आंखिर कब तक ?
उसे तो उसकी आदत पढ़ चुकी है 
जिसे छोड़ कर उसे एक दिन जाना है |
उसे फिर से अपनी पहचान को बनाना है |
उस जहान में जहां उसका कोई नहीं 
एक बार फिर से नया जन्म ...
कितनी बार टूटती और 
कितनी बार जुड़ती होगी ये कहाँ
कोई जान पाता है |
ये तो उसका अपना एक संघर्ष है 
खुद को स्थापित करने की लड़ाई |
फिर से एक रचना लिखने की 
एक खुबसूरत कोशिश |
दिलों को जीतने का  प्रयास 
कोई कामयाब और कोई ...
पर  प्रयास निरंतर जारी |
जब तक हिम्मत तब तक जीत |
हर मोड़ पर सवाल करती जिंदगी |
बहुत लम्बी यात्रा ,
कई सारे पड़ाव ,
जवाब थक कर चूर ,
पर सवाल ... 
अब भी जवाब के इंतजार में 
आंखिर में सिर्फ एक शून्य 
और कुछ भी तो नहीं ,
पर प्रयास निरंतर जारी 
सिर्फ जीने के लिए |

अमीरी - गरीबी

जग में  फैला चारों तरफ  कैसा ये द्वन्द है |
जिसका दिखता न जहां में अब कोई अंत है |


अमीरी खुद को देख मुस्काती है जिस पल  |
गरीबों की आँखें तो भीग जाती है उसी पल  |


ये कैसे  एहसासों की  फैली हुई सी गंध है |
जिससे आज भी भरा पडा सारा समुन्द्र है |


न जाने ये फासला कबतक रहेगा दोनों में |
अमीरों की बेरुखी  दर्द करेगी उनके सीने में |


अगर ये सिर्फ पेट भरने तक की ही बात होती |
तो सारा जहां आज बन गई एक मशाल होती |


ये कोई भूख नहीं !  ये तो सिर्फ हवस भर ही है |
तभी तो इसका आजतक न दिखा कोई अंत है |


अमीर की चाहत उसे न जाने कहां ले जाएगी |
गरीबों की पुकार भी क्या वो कभी सुन पायेगी |


ये सिलसिला तो जहां में बहुत - बहुत पुराना है |
गरीबों को तो बस अपने वादों पे जीते जाना है |


युग आता है हर बार और आके चला जाता है |
उन्ही  पन्नों को फिर से  रंगीन बना जाता है |


गरीबों के गिरेबान में झांककर कौन देखता है |
उनके दर्द को तो खुदा की रहमत ही कहता  है |


उनकी दास्ताँ यही है उनको ऐसे ही जीते जाना है |
छोडो कुछ और कहें , ये फलसफा बहुत पुराना है |




सूरज और चंदा


सूरज ने खुद को जो  समेटा है |
शाम ने रात की  चादर को ओढा है |
आसमान में तारों का अब पहरा है |
चाँद ने भी तो चुपके से डाला अपना डेरा है |

देखो फिर से वो हंसी रात आई है |
कितने रंगीन सपने वो साथ लाई है |
जाके देखना जरुर आज उस चाँद को ,
क्या अपने लिए भी , वो  कोई सौगात लाई है |

वो तो रोज़ चांदनी  के संग आता  है |
हमारे सपनों में आके हमें चिढाता  है |
आज हम भी उसकी चांदनी चुरायेंगे |
देखते हैं आज वो कैसे अपनी रात सजाता  है |

हमने भी आज कसम ये खाई है |
चाँद को  चांदनी की कसम दिलाई है |
हम भी  चांदनी को तब तक  न छोड़ेंगे |
जब तक चाँद में  दाग क्यु है , ये न जानेगें |

लो आज फिर से ये बात अधूरी रह गई |
हमारे दिल की बात दिल में दबके  रह गई |
सूरज की किरणों ने भी दस्तक है दे डाली |
आज फिर से चाँद की चांदनी  निगल डाली |`

प्यार ही प्यार


कितनी अजब सी ये बात है |
जीवन के साथ , कैसा ये खिलवाड़ है |
जिसके  एहसास से सृष्टि है खड़ी  हुई |
जिसके क़दमों तले है दुनिया झुकी हुई |
उसी की गिरफ्त से सब है बचना चाहे |
उसके पहलूँ से न बंधना चाहे |
वो खून में चलने  वाली रवानगी है |
वो तो फुल में बहने वाली खुशबु है |
फिर क्यु इसके नाम से इन्सान है कापें |
उसके एहसास को क्यु न समझ पाए |
क्या सबको   इसका ज्ञान नहीं ?
या उसके एहसास का भान नहीं ?
वो  तो निरंतर बहने वाली धारा है |
न बुझने  वाली ज्वाला है |
वो  स्वतंत्र सोच का विस्तार है  |
न कोई रीती , और न ही  रिवाज़ है  |
न  धर्म  , और न ही कोई समाज है  |
हर रूप में खुद को सजाए हुए |
हर वर्ग में अपना साम्राज्य बनाये हुए |
रोको ... तो दुगनी गति से बढता हुआ |
इक मस्त पवन सा उड़ता हुआ |
 वो तो है हर एक गुलशन में ,
भँवरे के प्यारे गुंजन में |
हर एहसास में खुद को गड़ता हुआ |
हर डर से आगे बढता हुआ |
एक मौन  निमंत्रण की भांति |
एक  एहसास को हरदम रचता हुआ |
दिल की धड़कन में बसता हुआ |
उसकी धड़कन उसका  पैमाना है |
उसकी गति ही उसकी  सूचक है |
हवस , जोर , जबरदस्ती 
ये सब इसके नाम नहीं |
समर्पण , सम्मान , विश्वास  
हाँ इससे ही उसका नाता हैं |
शायद इसी से लोग  घबराते हैं ?
इसके  एहसास से दूर हो जाते हैं |
प्यार से खुबसूरत कुछ भी नहीं |
वो तो जीने की एक आशा  है |
सारे कण - कण की अभिलाषा  है |
जो जीवन को गति है देता |
आपस के प्यार को बल देता |
उसके बिन  जीवन नीरस है |
वो इक  दजे  के  पूरक  है  |
सारी सृष्टि में उसका वास  है |
क्युकी प्यार ही सबका संसार है |
हमको  तो  सिर्फ समझना है |
बस उसके  रंग में खुद को रंगना है |