गहराइयाँ


आओ अपने ही अन्दर कुछ ऐसा  ढूंढे |
दिल की गहराई में छिपी गहराई ढूंढे |

कहीं  न कहीं तो छुपा हुआ है वो  राज़ |  
सितारे और सूरज जहां पर हैं बेहिसाब |

आपस में जो करते रहते हैं ये बातें |
उन्ही तन्हाइयों में कोई गहराई ढूंढे |

अपने भीतर वो सीपी जिसमे हैं मोती |
वो खानें जहां बन रहें हैं बेशुमार मोती  |

चलो आज उन्ही से उनका पता हम पूछें |
वो सूरज जिसकी खातिर जी रहें है लोग |

वो पूनम जिसका नशा पी रहें हैं सब लोग |
आज उन्ही से उस राज़ का हम पता  पूछे |

आओ अपने ही भीतर रह कर ये बात पूछे  |
आओ अपने ही भीतर रह कर ये राज़ पूछे  |

संसार

ये अपने विचारों का द्वन्द है , 
जीने दो उसको जो स्वछन्द है |
निराधार है सारी बातें ,
जिसमें  कोई सार  नहीं |
नाम के हैं सारे रिश्ते ,
जिसमें प्यार नहीं , सत्कार नहीं |
क्या बतलाएं उन जख्मों को ,
जिनके भरने की तो बात  नहीं |
हाहाकार है सारी दुनियां में ,
यहाँ जीने के आसार नहीं |
इस रंग बदलती दुनिया में ,
कौन  एसा है जो बेकार नहीं |
हाय - हाय का शोर है हरतरफ ,
कोई कोना भी आबाद नहीं |
बात कहने से बात बिगडती है ,
बातों में अब शिष्टाचार नहीं ,
कसम  खा लेने  भर से ...
मिट सकता भ्रष्टाचार नहीं |
हर तरफ नफरत की आग लगी है ,
जिसका कोई पारावार नहीं |



कैसी है ये जिंदगी

जिंदगी की भी अपने आप में... 
एक अजब सी है  कहानी  |
जितना इसके करीब जाओ 
उतनी हमसे दूर है चली जाती  |
और जब हम ... दूर जाना चाहें 
तो ये उतना करीब है आ जाती  |
शायद ये दूर से पास आने - जाने के 
एहसास का नाम ही है जिंदगी  |
न तो खुद करीब है ये आती  | 
न ही  खुद से दूर , जाने ही है ये देती |
समझ ही नहीं आता , कि हमसे 
और क्या - क्या है ये चाहती |
बस जब देखो हममें एहसासों का ...
एक नया रंग है भरती जाती  |        
और उसी में हमें  बांध कर ...
हमसे वो दूर है निकल जाती  |
अपनी जिंदगी तो वो ...
हममें रहकर  है जी जाती  |
हमें हमारी ही जिंदगी से 
महरूम करके है चली जाती  |
बहुत खुबसूरत अंदाज़ है 
उसके जीने का |
खुद पर तो वो कोई इल्ज़ाम 
ले कर ही नहीं चलती  |
बस हमें  हमारे हाल पर ही 
हरदम है छोड़ जाती |
काश ये अंदाज़ हम भी 
थोड़ा - थोड़ा जान लेते    |
तो जिंदगी को एसे  थाम लेते ,
कि खुद से दो कदम भी दूर
 कहीं जाने ही न देते |

बस ख्यालों में

छन - छन - छन - छन  - छन 
झंकृत करती सी ये प्यारी ध्वनी |
कानों को मोहित करने लगी |
लगता है जैसे गाँव की  दुल्हन ,
शहर में रहने को  मचलने लगी |
वो चूड़ियों की खनखनाहट ,
दिल में घर यूँ करने लगी ,
जैसे सात स्वरों के साथ वीणा
खुद बजने लगी |
सर से सरकता वो पल्लू 
बेताबी एसे बढ़ाने लगा ,
जैसे  बादलों की ओट से 
चाँद का दीदार होने लगा |
उसकी खिलखिलाती सी हंसी
कली से फुल बनने लगी |
उसकी बलखाती सी वो चाल
न जाने कैसा असर करने लगी 
जैसे साकी पर बिन पिए ही ...
असर करने लगी |
न जाने ये कैसी बैचेनी
मुझमें अब होने लगी |
ख्यालों की ये खुबसूरत बला
हकीक़त में तबदील होने लगी |

सिर्फ मैं

 
मैं , अहम् , अहंकार ...
क्या रखा है इसमें ?
कुछ भी तो नहीं |
पर इन्सान सारी उम्र सिर्फ 
और सिर्फ इसीको पाने 
में ही गुजार देता है |
धन है तो अहंकार |
यश है तो अहंकार |
पद है तो भी अहंकार |
ताक़त है तो अहंकार |
अरे और तो और , त्याग करने 
में भी अहंकार |
मैं से बड़ा झूट तो इस 
दुनिया में दूसरा कोई है ही नहीं |
फिर ये सब क्यु और किसलिए ?
फिर ये घमंड ये अहंकार ?
ये सब तो क्षण भंगुर हैं |
पर इसका असर बहुत 
भयंकर है ये एक दुसरे को तोड़ने के
सिवा और कुछ नहीं करता  |
जिसका कोई आधार ही 
वो सत्य कैसे  हो सकता ?
प्रकृति को ही देखो न 
क्या नहीं है उसके पास ?
लेकिन वो जानता है |
हर बात को समझता है ,
की जो भी है वो सिर्फ थोड़ी देर का है ,
सब कुछ नाशवान है |
उससे मोह कैसा ?
जो अपना है ही नहीं ,
जो हर वक़्त हमारे साथ 
रह ही नहीं सकता 
उसके लिए मैं , अहंकार , घमंड  कैसा ? 

अंदाज़ अपना - अपना


क्यु हरदम टूट जाने की बात करती हो |
नारी हो इसलिए बेचारगी की बात करती हो |
क्या नारी का अपना कोई आस्तिव नहीं ?
एसा कह कर खुद को नीचे गिराने की बात करती हो |

खुद को खुद ही कमजोर बना , ओरों पर क्यु 
इल्ज़ाम  लगाने जैसी बात कहती हो ?
खुद को परखने की हिम्मत तो करो |
कोंन कहता ही की तुम ओरों से कम हो ?

एसे तो खुद ही खुद को कमजोर 
बनाने की बात कहती हो |
नारी की हिम्मत तो कभी कमजोर थी ही नहीं |
ये तो  इतिहास के पन्नों में सीता , अहिल्ल्या 
सती सावित्री  की  जुबानी में  भी  है |

फिर क्यु घबरा कर कदम रोक लेती हो ?
अपनी हिम्मत को ओरों से कम क्यु 
समझती हो |
अपना सम्मान चाहती हो तो पीछे हरगिज़ 
न तू हटना |
पर किसी को दबाकर उपर उठाना एसा भी 
तू हरगिज  न करना |

इस सारी सृष्टि में सबका अपना बराबर 
का हक है |
खुद के हक को पाने के लिए किसी को भी 
तिरस्कृत तू हरगिज़ न करना |
ये नारी तू प्यार की देवी है |
इस नाम को भी कलंकित तू 
कभी न करना |

प्यार से अपने हिस्से की गुहार
तू हर दम करना |
अपने साथ जोड़ना ... किसी को 
तोड़कर आगे कभी न  बढ़ना |
साथ लेकर चलने का नाम ही समर्पण है |
नारी के इसी प्यार पर टिका सृष्टि 
का ये नियम भी है |
इसको बचा कर रखना इसमें तेरा , 
मेरा और सबका  हित भी है |            

क्या होता है प्यार


एक मूक पहेली का नाम  है प्यार |
एक खामोश सफ़र भी तो है प्यार |
मीठे से दर्द का नाम है प्यार |
दिल की मीठी कसक भी तो है प्यार |
प्यार करना आसन है |
पर प्यार निभाना इतना भी आसान नहीं | 
न जाने कितनी दूरियां तय कर लेती है प्यार |
सिर्फ एहसास में ही तो जिन्दा रहता है प्यार |
कभी किसी बंधन में कब बंधा है प्यार |
हर दम ख्यालों में पलता है प्यार |
जितना बांधों उतना ही दूर हो जाता है प्यार |
मस्त गगन में ही तो हरदम रहता है प्यार |
न ही ये तेरा और न ही मेरा है ये प्यार |
जिसने प्यार दिया बस उसकी का ही तो 
हो जाता है ये प्यार |
प्यार किसी के बांधे से कब बंधा है |
ये कब , कहाँ , कैसे किसी के पास ठहरा है |
क्यु झूठी तसल्ली  देते हैं सब एक -दुसरे  को  ?
क्युकी जानते तो सब ही हैं की क्या होता है प्यार |
एक मीठे से एहसास का नाम ही तो है न प्यार |
फिर क्यु एक दुसरे को गुमराह करते हो यार ?

होंसलों की उड़ान


                  " तुम्हारे साथ रहकर , अक्सर मुझे एहसास हुआ है |
                   की हम असमर्थताओं से नहीं , संम्भावनाओं से घिरें हैं ||
                   हर दीवार में द्वार बन सकता है , और हर द्वार में ,
                             पूरा का पूरा पहाड़ गुजर सकता है || "
                                             सुधा चंद्रन भरतनाट्यम नृत्य में अपनी एक खास पहचान  बनाने वाली एक एसी  नारी का नाम है जिसने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की इन पंक्तियों को अपनी मेहनत और लगन से  साकार बना दिया | गंभीर घटना में अपना पैर गँवा देने के बाद , ठीक से खड़ा हो पाना भी मुश्किल था , लेकिन ये बात उन लोगो पर लागु होती है जो थोड़ी सी विपत्ति आने पर अपनी हिम्मत खो देते हैं और खुद को दुसरे के सहारे बिना सोचे समझे छोड़ देते हैं , जिन्हें अपने भविष्य पर और खुद  पर  यकीं नहीं होता लेकिन ये बात सुधा चंद्रन और इनके जैसी हिम्मत रखने वाली नारी पर  कोई प्रभाव नहीं छोड़ता  वो वक़्त से लड़ना जानती है उसे  ओरों से ज्यादा खुद पर यकीं होता है उसे अपनी बाजुओं की ताक़त पर यकीं होता है | 1981 में एक दुर्घटना के बाद डाक्टरों की लापरवाही से गेंगरिन की शिकार होने और अंतत: उसकी वजह से अपना एक पैर गँवा देने के बावजूद सुधा चंद्रन ने हार नहीं मानी | उन्होंने तोड़ कर रख देने वाली इस घटना  को नियति मान कर संतोष नहीं किया बल्कि अपनी हिम्मत और जज्बे की बदौलत सिर्फ दो साल के भीतर ही नृत्य की दुनिया में वापस लौट कर अपनी हिम्मत का परिचय देकर लोगो को अपनी कला से अभिभूत कर दिया | सुधा की इस प्रेरणादायी
कहानी पर 1984 में तेलगु में मयूरी नाम से फिल्म बनी | इसके दो साल बाद 1986 में में ' नाचे मयूरी ' के नाम से हिंदी रीमेक भी बना , जिसके लिए नेशनल फिल्म अवार्ड्स में ज्यूरी का विशेष परुस्कार भी मिला |
                               उन्होंने डांस के साथ - साथ कई फिल्मों , टीवी धारावाहिकों में भी अभिनय किया है | सुधा कई देशों में अपनी डांस परफोर्मेंस दे चुकी हैं और कई पुरुस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं | एकता कपूर के धरावाहिक ' कहीं किसी रोज़ ' में उन्होंने रमोला सिकंद की भूमिका निभाई | इस रोल ने इन्हें इनकी पहचान और आसन बना दी और अपने होंसलों की उडान को जारी रखते हुए ये अपनी कामयाबी का परचम लहराती  गई | ' तुम्हारी दिशा ' सीरियल के लिए 2005 में इन्हें सर्वश्रेष्ठ खलनायिका का पुरस्कार  भी प्राप्त हुआ | सुधा जी की ये कहानी सिर्फ अक्षम लोगों के लिए ही नहीं है बल्कि ये सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा दायक है जो थोड़ी सी मुसीबत आ जाने पर खुद को असहाय नाकारा समझने की गलती कर बैठते हैं | ये इस बात की एक मिसाल है की हिम्मत लगन और द्रिड निश्चय से हम किसी परेशानी को खत्म  कर सकते हैं और किसी पर बोझ न बन कर अपने आत्म सम्मान की रक्षा बहुत खूबसूरती से कर सकते हैं | मैं आज उनकी हिम्मत और जज्बे को सलाम करती हूँ |
             जिंदगी तो रोज़ एक नया ख्वाब दिखाती  है | 
          जीने की तमन्ना ही न तो , इसमें उसका क्या कुसूर ||