चारों तरफ क्रंदन ही क्रंदन
इन्सान इतना बेरहम
कब से हो गया |
किसी के दर्द से जैसे
उसका कोई वास्ता ही नहीं |
अपने दर्द में इतनी झटपटाहट
और दुसरे का दर्द ...
सिर्फ एक खिलखिलाहट |
फिर क्यु अपने लिए ... दुसरे की
आस लगता है वो ?
जब दुसरे के दर्द तक को तो
सहला नहीं पाता है वो |
क्या उसकी सहानुभूति
सिर्फ अपने तक ही है ?
क्या दूसरों के लिए उसके
दिल में कोई जगह ही नहीं ?
शायद इसी वजह से
इतना दर्द है सारे जहान में |
इतनी चीख - पुकार है
सारे संसार में |
बस सब इसी इंतजार में हैं शायद ...
की कोई तो मेरी दर्द भरी
आवाज़ को ...सुन पायेगा |
और देखकर मेरे हालत को
वो प्यार से मरहम लगाएगा |