सिर्फ अपना दर्द ही अपना


चारों तरफ क्रंदन ही क्रंदन 
इन्सान इतना  बेरहम
कब से हो गया |
किसी के दर्द से जैसे 
उसका कोई वास्ता ही नहीं |
अपने दर्द में इतनी झटपटाहट 
और दुसरे का दर्द ...
सिर्फ एक खिलखिलाहट |
फिर क्यु अपने लिए ... दुसरे की 
आस लगता है वो ?
जब दुसरे के दर्द तक को तो 
सहला नहीं पाता है वो |
क्या उसकी सहानुभूति 
सिर्फ अपने तक ही है ?
क्या दूसरों के लिए उसके 
दिल में कोई जगह ही नहीं ?
शायद इसी वजह से 
इतना दर्द है सारे जहान में  |
इतनी चीख - पुकार है 
सारे संसार में |
बस सब इसी इंतजार में हैं शायद ...
की कोई तो मेरी दर्द भरी 
आवाज़ को ...सुन पायेगा |
और देखकर मेरे हालत को 
वो प्यार से मरहम लगाएगा |

परिचय

ये जो आसमां  में बादलों के साये हैं |
धरा से आसमां  में किस कदर ये छाए हैं |
कितने  हक से दोनों जहाँ में रहते हैं |
बरसते तो हैं  ये  उमड़ - घुमड़   के ,
फिर उनके ही दामन से लिपट जाते हैं |
कैसा  रिश्ता है आपस में दोनों का इस कदर
बिछुड़ने पर भी हर बार मिलने को ये तरसते हैं |
गरजते  हैं बरसते हैं , न जाने एक दूजे से
क्या ये कहते हैं |
फिर भी एक ही  आशियाँ में जाके साथ  रहते हैं |
धरा  की प्यास ये  बुझाते  हैं |
प्रकृति को हरा - भरा  बनाते है |
सारी सृष्टि को नया जीवन दे कर...
निस्वार्थ भाव... अपना परिचय बतलाते हैं |
कई - कई बार इस कदर खुद को मिटाते हैं
फिर उसी आस्तिव को पाने  उसी रूप में आ जाते हैं |


शिव बीज और पार्वती क्षेत्र स्वरूप

शिव बीज और पार्वती क्षेत्र स्वरूप हैं | शिवलिंग , संरचना , निर्माण का प्रतीक है , लिंग व् योनी का समागम है , इसमें शिवलिंग में सांप दर्शाया  जाता है और उस लिंग पर ऊपर से जल गिर रहा है अर्थात काम वासना रूपी अग्नि उस जल के द्वारा शीतल शांत रहे , वर्ना वासना की अधिकता शव बना सकती है | जन्मकुंडली का पहला भाव लिंग स्वरूप ,चौथा भाव जल स्वरूप व् सप्तम भाव योनी स्वरूप है और अष्टम भाव शमशान है जन्म पत्रिका का पहला केंद्र स्वयं शिव है | उसके दोनों तरफ धन और व्यय है | चौथे केंद्र के दोनों तरफ साहस  और बुद्धि है | सप्तम भाव केंद्र  के दोनों तरफ रोग , शत्रु , क़र्ज़ व् मृत्यु है , जबकि दशम भाव के दोनों तरफ भाग्य व् लाभ हैं | सप्तम भाव मारक स्थान होता है , अत : काम वासना भी मारती है विपरीत लिंगी आकर्षण भी मारक होता है | जीवन साथी प्राप्ति में क़र्ज़- रोग व् शत्रुता सब हो सकते हैं लेकिन इस वासना से निकलोगे तो धर्म भाव पहचानोगे , अर्थात जन्म कुंडली के अगले भाव धर्म - कर्म - लाभ - हानि इसे पहचान पाएंगे | जन्म कुंडली का पहला भाव शिव है तो सप्तम भाव पार्वती है | यही बात नर से नारायण और नारी से नारायणी होने की कला सिखाती  है |

प्यारी सी दुआ

आज का ही तो वो दिन था |
जब इन मजबूत हाथों से 
थामा था मैने तुम्हें |
तब से आज तक पल - पल 
बढ़ते देख रही हूँ मैं तुम्हें |
तुम हर बात से बेखबर भले ही हो ,
पर मैं तो हर वक्त तुम्हारे साथ 
साये की तरह रहती  हूँ |
तुम्हारे अच्छे काम मैं तुम्हारे 
साथ झूमती भी हूँ  |
तुम्हारे बहक जाने पर तुम्हें 
राह भी दिखाती हूँ |
तुमने कब बचपन पीछे छोड़ 
जवानी में कदम रखा 
ये सब कहाँ जान पाई मैं |
क्युकी मेरी आँखों ने तुम्हें  हर पल 
वही छोटा सा बच्चा समझा |
तुम्हारा वो हँसना - हँसाना 
पल - पल मैं रूठ जाना |
सब अपने साथ ही लेके तो 
चलती हूँ मैं |
अब तुम हर बात को समझती हो |
पर मेरे सामने तो आज भी तुम 
वही प्यारी सी बच्ची हो |
तुम भी इस बात को आज
खूब समझती हो |
तभी तो तुम  भी बच्चों की तरह 
मुझसे वैसे  ही लिपटती हो |
कितना प्यारा सा रिश्ता है 
ये मेरा और तुम्हारा |
कभी प्यार , कभी तकरार 
पर फिर भी है सबसे खास |
मेरी दुआ है की बना रहे ये 
प्यारा सा  एहसास हर दम 
हमारे साथ |
और तुम आगे बढती रहो 
इसी दुआ के साथ  |

सपनो का संसार

                 आज का युवा वर्ग काफी रचनात्मक और उत्साह से भरा हुआ है कभी २ वो विध्वंसकारी और अवसादग्रस्त भी हो जाता है | वो देश में अपनेआप को स्थापित करने के लिए अपने लिए जगह तलाश कर रहा है पर मिडिया हर मोड़ पर उसे दिशाहीन बना दे रही है | घर और बहार की दुनिया में जब वो काफी अंतर देखता है तो कोई भी निर्णय लेने में असमर्थ हो जाता है | देश के नेताओं  का भ्रष्टाचार में लिप्त  होना मिडिया के इतने प्रचार के बावजूद भी उनपर किसी प्रकार की कार्यवाही  न होना , आतंकवाद का खत्म  न हो पाना | कश्मीर में शहीद  होने वाले शहीदों की कवर स्टोरी न बनाने की जगह फ़िल्मी हस्तियों की कवर स्टोरी बनाना ये सब उसे अपने आपसे यह पूछने पर मजबूर कर देते हैं की आखिर वो किसे अपना हीरो माने | अपने दिल में वो बहुत से सपने लेकर चलता है की उसे लेकर वो उन ऊँचाइयों को छु सके जिनके वो सपने देखता है |
                       कितना सरल सा शब्द है ये सपना  ? लेकिन सही मायनो में ये अपने आप में बहुत बड़ा स्थान रखता है इसका सम्बन्ध मानव से एसे जुड़ा है जिसके बिना वो अधुरा सा हो जाता है | सपनों  के बिना तो उसका सफ़र आगे बढ ही नहीं सकता हर इन्सान सपने देखता है उनमें से कुछ तो हम पुरे कर देते हैं और कुछ  सपने ही रह जाते हैं | हर सपना उसे इन्सान के लक्ष्य की और आगे बड़ने में सहायता करता है उसे होंसला देता है और हम उन ऊँचाइयों  को छु लेते हैं जहां तक पहुँचने का हम सोचते भी नहीं हैं | सपने दो तरह के होते है एक जो हम बंद आँखों से देखते हैं और एक वो जो हम खुली आँखों से देखते हैं | खुली आँखों से देखे हुए सपनों  का हमारे जीवन से गहरा ताल्लुख  होता है |
            आज का युवावर्ग तरल सतह पर टिके सपने देखती है क्षितिज के पार अनजाने भविष्य के सपने | आज के युवावर्ग में इतना जोश है की वह सिर्फ सपना देखती ही नहीं उसे पूरा करने के लिए वो कुछ भी कर  गुजरने को तैयार होती है |  उसके अन्दर इतना जोश है की उसे आगे बड़ने के बाद रोकना नामुमकिन है | जरूरत है तो सिर्फ उसे सही राह में बड़ने की दिशा दिखाने की जिससे वो अपने सपनों  को सही दिशा दिखा सके | सपने रंगों की तरह होते हैं ' संसार सपनो का केनवास ' हैं , बस मन में विश्वास ले कर उसे अपने रंगों से भरते जाना है | अगर हम कल्पना नहीं करेंगें  तो उसे हासिल कैसे  कर पाएंगे , सपने देखना खुशहाल जीवन को आगे बढ़ाने  की सीडी जैसा  है | अक्सर लोग सपने देखने वालों  पर पहले हँसते हैं पर जब उसे पूरा होने पर ये शब्द कहना की ये मेरा ' बचपन का सपना ' था तो सपनों  की महत्ता  पर यकीं करवा  ही देतें  है |
              जीवन में सबसे पहले कुछ पाने की चाह मन में उठती है उसे पूरा करने के लिए लगन परिश्रम और द्रिड निश्चय का होना बहुत जरुरी है | यही सब हमें सपनों  को साकार करने में मदद  करती है|ज्यादातर  सफल लोग इसी राह में चल कर आगे बड़ते हैं , उनके अलग - अलग  ढंग  से सोचने और कुछ कर गुजरने की चाह ही उसे उन बुलंदियों  तक ले जाती है | एक स्थान में बैठ कर खाली सपने देखने से कुछ  हासिल नहीं होता उसे पाने के लिए मेहनत करना बहुत जरुरी  है  एसा सपना तो पानी के बुलबुले के समान होता है जो कुछ ही देर में खत्म  हो जाता है | सपना देखो तो नदी के बहाव की तरह उस अंजाम तक पहुँचों  क्युकी  जब पानी जिस  जगह से शुरू होती है तो बहुत छोटे से स्थान से निकलती है और चलते - चलते  उसका विस्तार बढता चला जाता है ! सपने भी हमारे जीवन की एसी  ही मजबूत कड़ी है जो सब कुछ  बदलने की ताक़त रखती है अगर जरुरत है तो सिर्फ सही दिशा और हिम्मत से उसे पूरा  करने की |
                       " आँखों में सपने मन में बंधन और आसमान में उड़ने की चाह "... यही है युवावस्था | युवा सपने गरम लहू के समान होते हैं , वे देश की धमनियों और शिराओं  में दौड़ते  हुए उसे भीतर ही भीतर बदल डालने की क्षमता रखते हैं | दुनिया की हर क्रांति  से पहले बेहतर  भविष्य की कल्पना ही लोगों  के शरीर  में गतिमान होते रहे होंगे | क्रांतिकारियों और रचनात्मक सपनो में फर्क  सिर्फ इतना है की क्रांतियाँ  गर्जना करती है और रचनात्मक सपने देश में बहुत धीरे से बदलाव लाती है | युवा मन के सपने बसंत की तरह होते हैं जो दबे पांव  आता है और देश के भविष्य को बदल डालता है , और सारा देश नई तकनीक नई समृधि और विकास के रंगों में रंग जाता है | युवा स्वपन  देश को अहिंसक  ढंग  से बदलने  का मादा रखता है जरुरत है सुकरात जैसे  एक एसे अच्छे मरगदर्शक की जो उन्हें सही राह दीखा सके जो उनके विचारों  को सही दिशा  दे सके क्युकी  मानव मन तो बंजर भूमि की तरह है उसमें  जेसा बीज हम बोयेंगे वेसा ही प्राप्त करेंगे | आज देश में एसे ही लोगों  की जरुरत है जो नई प्रतिभावों  को  सही राह में ले जाने के लिए ईमानदारी से प्रयास कर सके |
                     आजका नौजवान  एक सक्षम देश बनाने का सपना देखता है दरअसल हमारी युवा पीढ़ी  महज सपने देखती नहीं बल्कि रोज यथार्थ से लडती है उसके सामने भ्रष्टाचार , आरक्षण का बिगड़ता स्वरूप  और महंगी होती शिक्षा जैसी  ढेरों समस्याएँ   हैं इस चुनौती  से भरी दुनियां  में उसे अपने को स्थापित करने के लिए संकल्प के साथ आगे बढना है और अपने भविष्य को संवारना  हैं  | क्युकी हर आने वाला  वक़्त अपने साथ चुनौतियाँ   ले कर चला है कभी युद्ध तो कभी प्राक्रतिक आपदाएं  लेकिन कैसा  भी समय क्यु न आ जाये हमारे भीतर के सपनों  को हमसे कोई नहीं छिन सकता _  में  धरती मै पैदा होने वाले हर इन्सान को प्रणाम  करती हु क्युकी हर इन्सान मै बरगद के पेड़ बनने की क्षमता नज़र आती है | जो अपनी मेहनत  के द्वारा  अपने सपनों को कभी भी साकार कर सकता है |                              


मौन सृजन

   इसरा अबदेल

                          क्या होता है ये सृज़न ? क्या तोड़ - फोड़ , शोर - गुल के माध्यम से ही इसे लाया जा सकता है | नहीं... सृज़न जब भी  होता है तो अधिकतर मौन  के रूप में ही आता है जिसका असर हर तरफ नज़र आता है और ये सब कर पाना कोई कठिन नहीं क्युकी इतिहास तो  बनता और बिगड़ता रहता है | इतिहास को बनाने और बिगाड़ने का सबसे बड़ा हाथ हम इंसानों को ही जाता है | अगर हम दिल में ठान ले की हमने कुछ एसा करना है जिससे हम एक नया इतिहास रच दे तो एसा करना बहुत बड़ी बात नहीं हमें  कुछ एसा करना होगा की इन्सान खुद हमसे जुड़कर आगे बढ़ने और हमारा साथ देने को मजबूर हो जाये | ये काम भीड़ भरी जनता के सामने भाषण देने से ज्यादा खामोश रह कर कुछ एसा रचने से होगा जिससे किसी को नुकसान भी न हो और हम अपने काम में सफल भी हो जाये क्युकी भीड़ के शोर में वो ताक़त नहीं होती जितना  शांत रहकर सृजन करने में है | मौन सृजन में इतनी ताक़त है की वो सत्ता का तख्ता पलटने तक की ताक़त रखती  है | 
                           रगों में दौड़ने  फिरने के हम नहीं कायल 
                         जब आँख से ही न टपके तो फिर लहू क्या है |
              कहते हैं ये शेर मिर्ज़ा ग़ालिब ने  बहुत समय पहले हिंदुस्तान  में कहा था पर एसा लगता है की मिस्र  की काहिरा विश्वविद्यालय की छात्रा ' अस्मां महफूज़ ' ने भी इसे जरुर पढ़ा  होगा जिसने इसे पढ़कर मिस्र में एक क्रांति लाने की ठान ली | वो वहां के लोगों की गरीबी , बेरोजगारी , भ्रष्टाचार और मानवाधिकारियों के हनन से त्रस्त मिस्र के लोगों की सरकार के खिलाफ बगावत की अग्रदूत बन गई थी अस्मां | अपने इंटरव्यू में उसने कहा था की हाँ में नाराज़ थी ___सबके मुहं  से ये सुनती थी की हमें  कुछ करना चाहिए पर कोई कुछ नहीं कर पा रहा था | इसलिए एक दिन मैनें  फेस - बुक पर लिख डाला की दोस्तों ____ मैं आज तहरीर चौक  पर जा रही हूँ मैं वहां अपना अधिकार मागुंगी | यह 25 जनवरी की बात है वह कुछ लोगों के साथ वहां गई  पर  उसे वहां प्रदर्शन करने नहीं दिया | उसके बाद उसने एक विडिओ बनाई जिसमें  लोगों को उनसे  इस मुहीम में जुड़ने की अपील थी और इसे ब्लॉग और फेसबुक  पर डाल कर प्रसारित किया ये विडिओ जंगल में आग की तरह फैल गया और एक बार फिर मौन सृजन हुआ |
                  अस्मां की तरह मिस्र की अहिंसक क्रांति के दौरान कई नायक जन्में जिन्होनें सोशल मिडिया का इस्तेमाल कर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा डाला | गूगल के अधिकारी ' वेल गोमिन ' और मिस्र की एक निजी कम्पनी में मानव संस्थान समन्वयक रही ' इसरा अबदेल फातेह ' इन्ही लोगों में से है | इसरा अबदेल ने 2008 में मिस्र के लोगों को फेसबुक की एहमियत से पहली बार परिचित कराया | उस वक़्त सिर्फ 27 की इस लड़की ने वह कारनामा कर दिखाया  था जिसे वहां के विरोधी दल नहीं कर पा रहे थे | इसरा के फेसबुक पेज ने चुपके से 70 ,000 लोगों को अपने साथ जोड़ा , जिन्होंने देश में पहली सार्वजनिक हड़ताल को सफल बनाने में खास भूमिका निभाई | नतीजा ये हुआ की इसरा को गिरफ्तार कर लिया गया | करीब दो हफ्ते बाद इसरा रिहा हुई और इसका नाम ' फेसबुक गर्ल ' के नाम से मशहूर हो गया |
                    किसी खास मुद्दे पर कैंपेन चलाना , क्रांति को हवा देना ये सब नेटवर्किंग के जरिये एक मौन सृजन ही तो है , जो हैती  से मिस्र और भारत तक ये मौन  रहकर अलग -अलग उदाहरणों के साथ सोशल मिडिया की ताक़त हमें दिख रही है और इसकी चुप्पी रोज़ नए - नए आयाम गढ़ती  जा रही है | हाँ इसी का नाम तो मौन  सृजन है जो खामोश रह कर इतिहास को बदलता जा रहा है |