शब्दों से खेलना मुझे बहुत अच्छा लगता है |
कितना भी उसे तोड़ - मरोड़ लें ,
कभी कुछ नहीं कहती |
न उसे अपने सम्मान की फ़िक्र है |
न ही किसी बात का गर्व ,
और न ही कोई घमंड |
हमसे न कोई अपेक्षा रखती है |
न ही किसी उपेक्षा की ही फ़िक्र है |
कितना निस्वार्थ भाव है उसके जीवन में |
कोंन उसका इस्तेमाल कैसे कर रहा है ,
उससे बेखबर सी रहती है वो |
न अमीरों से कोई मतलब ,
न ही गरीबों से ही घमंड |
हर वक़्त सिर्फ और सिर्फ समर्पण |
एक प्यारे से बगीचे में फूलों को सजाए
बैठी रहती है |
लोग आते हैं कोई बेदर्दी से उन्हें तोड़ -
मरोड़ देते हैं जो शोलों के रूप में उभर
कर आग बरसातें हैं |
कुछ शांत भाव से उन्हें शब्दों से एसे
सजाते हैं की वो रामायण गीता बनकर
हमें सुन्दर संस्कार दे जातें हैं |