शब्दों का खेल निराला

शब्दों से खेलना मुझे  बहुत अच्छा लगता है |
कितना भी उसे तोड़ - मरोड़ लें ,
कभी कुछ नहीं कहती |
न उसे अपने सम्मान की फ़िक्र है |
 न ही किसी बात का गर्व ,
और न ही कोई घमंड |
हमसे न कोई अपेक्षा रखती है |
न ही किसी उपेक्षा की ही फ़िक्र है |
कितना निस्वार्थ भाव है उसके जीवन में |
कोंन उसका इस्तेमाल कैसे  कर रहा है ,
उससे बेखबर सी रहती है वो |
न अमीरों से कोई मतलब , 
न ही गरीबों से ही घमंड |
हर वक़्त सिर्फ और सिर्फ समर्पण |
एक प्यारे से बगीचे में फूलों को सजाए 
बैठी रहती है |
लोग आते हैं कोई बेदर्दी से उन्हें तोड़ -
मरोड़ देते हैं जो शोलों के रूप में उभर 
कर आग बरसातें हैं |
कुछ शांत भाव से उन्हें शब्दों से एसे 
सजाते हैं की वो रामायण गीता बनकर 
हमें  सुन्दर संस्कार दे जातें हैं |


परिवर्तन ही नियम


किसी के जाने से कारवां रुक नहीं जाता |
किसी के आने से इतिहास कब बदलता है |
जिंदगी एक प्रवाह है न रुका है न रुकेगा | 
चलता ही रहा है और चलता ही रहेगा |
अगर एक तरह से जी कर थक चुके हो तुम 
तो जीवन को जीने का अंदाज़ बदल डालो |
उसको जीने के मायने ही बदल दो तुम  |
इन्सान तो अपने आप आप में खूबियों का 
एक भरपूर पुलिंदा है |
वो जब चाहे गाँधी , सुभाष और जब चाहे 
सचिन और सहवाग बन सकता है |
तो इससे साफ़ जाहिर होता है की सारी
खूबियों का शहंशाह सिर्फ इन्सान ही है |
बस जरुरत है तो इतना की उसका उपयोग 
किस स्थान पर कब और कैसे  किया जाये |
क्युकी दुनिया तो एक रंगमंच है और 
हम सब इस रंगमच के कलाकार हैं  |
बस अपनी - अपनी कला से एक दुसरे को 
मोहित करना हमारा काम है  |
बस थोड़े वक्त  का ही ये खेल होता है |
क्युकी हम तो सितारे हैं उपर से आयें है ,
और वापस सितारों में ही जाके मिलना है |
जिंदगी की  रफ़्तार को न आज तक कोई 
रोक पाया है और न ही रोक सकता है |
सारी सृष्टि की ये सच्चाई है बिना परिवर्तन 
के कुछ भी संभव नहीं |
फिर और किसका इंतजार करना है |
इस जीवन को अपने ही अंदाज़ में 
जीके निकलना  हैं |
हाय तौबा  न करते हुए ख़ुशी - खशी 
आगे की और ही तो बढ़ना  हैं |   

ये संसार प्यारी सी बगिया



कोंन कहता है की ...
इंसान से इंसान से 
प्यार नहीं करता |
प्यार तो बहुत करता है 
पर इज़हार नहीं करता |

हर एक... को तो अपने 
पहलु से बांधे फिरता है |
पर फिर भी उसे कहने से 
हर वक़त ही वो  डरता है |

यूँ कहो की पुराने को हरदम 
साथ रख कर फिर कुछ 
नए की तलाश में रहता है |
उसका कारवां तो 
यूँ ही चलता रहता है |
तभी तो ता उम्र वो 
परेशान सा ही रहता है |

इस छोटे से दिल में न जाने 
कितनों को वो पन्हा देता  है |
फिर किसको छोडू किसको रखूं 
इसी में उम्र बिता देता है |

जब वो थक हार के 
सोचने जो लगता  है |
तब तलख  जिंदगी का
आधा हिस्सा ही गवां देता है 

यूँ कहो की  जिंदगी उससे 
बहुत दूर निकल  जाती है |
यूँ कहो की कसमे वादों की
एक किताब भर रह जाती है |

फिर क्यु इस दिल में  
सबका  का घर बनाये हम |
एक ही काफी नहीं जो 
जो सबको आजमाएँ  हम |

इन्सान का कारवां तो 
हर वक़्त नया गुजरता है |
सबसे हंस- हंस  के मिलें 
इससे भी तो काम चलता है |

संसार तो प्यारी सी बगिया  है |
इसमें रोज़  फूल खिले 
तो ये हरदम महकता  है |
जिंदगी को खूबसूरती से ये ही
रोशन करता है |
हममें जीने का नया होंसला  
भी भरता है |

उमंग ही जीवन


आज फिर शुरू हुआ जीवन 
जब मैनें आज प्यारा सा 
एक सपना देखा |
आज सुबह मैने सूरज को 
निकलता हुआ देखा |
आज फिर शुरू हुआ जीवन 
जब मैने हरदम रोते हुए
बच्चे को हँसता देखा |
एक बेटे को माँ के 
आंसू पोंछते हुए देखा |
आज फिर शुरू हुआ जीवन 
जब एक अंधे इन्सान को 
किसी राहगीर का 
सहारा देते हुए देखा |
लोगों के दिलों में एक दुसरे 
के लिए सम्मान देखा |
आज फिर शुरू हुआ जीवन 
जब पंछी को मस्त 
गगन में  उड़ते देखा |
झरने को कल - कल 
निरंतर बहते देखा |
आज फिर शुरू हुआ जीवन 
जब एक दोस्त का दोस्त 
के लिए समर्पण देखा |
ईश्वर के भग्त को 
भगति  में तल्लीन देखा |
आज फिर से मेरा जीवन 
शुरू हुआ |