कोंन हूँ मैं


हर पल जो सर उठाये  ,
बहती धारा को रोक आये  ,
जलती शमां को जो बुझाये  ,
हवा का रुख जो मोड़ने जाये  ,
नहीं - नहीं मैं वो तो नहीं !


बड़के सबका साथ दे जो ,
धारा के साथ - साथ बहें जो , 
शमां को फिर से रोशन करे जो  ,
हवा के संग - संग  चले  जो   ,
हाँ - हाँ मैं तो वही हूँ !


सबका दिल जो दुखाये ,
मतलब के लिए जो जी जाये ,
कुचल के आगे बड़ता जाये ,
किसी की उन्नति से जल जाये ,
नहीं - नहीं मैं वो तो  नहीं !


हाँ सबसे प्यार जो निभाए ,
दूसरों का होंसला बढाये ,
गिरतों को जो हरदम उठाये ,
ओरों की तरक्की  मैं जश्न मनाये ,
हाँ - हाँ मैं वही तो हूँ !


दिलों मैं नफरत को जो बढाये ,
देश मै हाहाकार फैलाये ,
गरीबों से प्यार न जताए ,
इंसा को इंसा से लड़ाए ,
नहीं -नहीं मैं वो हरगिज़ नहीं !


दिलों मैं  प्यार को जगाये ,
देश मैं शांति लेके आये ,
गरीबों को होंसला दिलाये ,
इंसा मै प्यार जो जगाये ,
हाँ - हाँ मैं बस वही  हूँ ! 


प्रकृति का नज़ारा

  

प्रकृति का ये नज़ारा है |
बहती नदिया की धारा है |
झरनों का शोर निराला है ,
सृष्टि ने इसको बनाया है |
न कोई साज़ न ही आवाज़
फिर भी इसमें है कोई बात ,
जो अपने पास बुलाती है |
मदमस्त हमें  कर जाती
क्या है इस आलोकिक शक्ति में  ,
जो बार - बार  इठलाती है |
फूलों की छटा लिए वादियाँ  ,
भंवरों का गीत सुनाती है |
नील गगन में  उड़ते बादल ,
पंछी का नाच दिखाती  हैं |
 बर्फ से ढकीं  हुई चादर  ,
हिम का मुकुट बन जाती है |
सारी प्रकृति अपनी कला दिखा ,
हम सबको  खूब रिझाती है |
सूरज की किरणें भी आ- आ के
अपने होने को दर्शाती है |
अपनी किरणों को घाटी में  बिखेर ,
स्वर्ग का एहसास दिलाती है |

ख़ुशी


ख़ुशी जो छुए तो बढ़के गले लगा लो उसे तुम ! 
न जाने वो पल कभी  फिर आये न आये कल !
इस जन्म मै फिर उससे मुलाकात भी न हो !
मोहोब्बत   है उसी से  कहीं  ये बात भी न हो !
जानती  हूँ मैं... तेरा तो  कारोबार बहुत बड़ा है !
मुझसे दूर तू न जाना मै तेरी ही इक सहेली  हूँ !
जिंदगी के साथ रहती हूँ इसलिए इक पहेली हूँ !
ख़ुशी - ख़ुशी तेरे वादे पर चलती  जाऊँगी मैं  !
जो तूँ साथ दे तो हर गम को भुलाती जाऊँगी मैं !
तू जो साथ हो मेरे  तो होंसला सा बढ़ता  है ! 
बीते लम्हों को भूलने का सिलसिला सा चलता है !
तेरे जाते ही जाने कयुं हर तरफ अँधेरा सा पसरता है !
न जाने हरदम जीने का ये सिलसिला सा थमता है !
अब तू जान गई है न ...तू मेरे कितने करीब है !
या अब भी किसी पन्ने का हिसाब बाक़ी रखती है !

इंतजार




मेरे इंतजार मै तू जो दो पल ठहर जाती !
तेरे गेसूं तले  फिर ये  शाम हो जाती !
तेरे दीदार पे मै ये जन्नत बिछा  देता !
मेरी ये जिंदगानी  खुशगवार हो जाती ! 
तेरी  नशीली आँखों का जो मै जाम पी लेता !
मयखाने  का तो रास्ता ही मै भुला देता  !
तेरी आह्ट  से जो तेरा पता मिल जाता !
तेरे क़दमों पे ही मै सारा जहाँ  पा  लेता  !
तेरे अश्कों को अपनी हथेलियों मैं लेके ,
तेरे हर गम को प्यार का मरहम देता !
तेरी हर ख़ुशी मै हरदम तुझ संग झूमता मैं 
अपने गम को शामिल उसमे हरगिज न करता !
जो तू कभी जान जाती मेरे इस प्यार को ,
तो तेरे सीने मैं सर रखकर  मैं बस रो देता !

सावन की फुहार


सावन की मन भावन की 
नाचत -  गावत आई बहार !
क्यारी - क्यारी फूलों सी महकी
चिड़ियाँ नाचे दे - दे ताल 
नाचत -  गावत आई बहार !
भंवरों की गुंजन भी लागे 
जेसे गाए गीत मल्लहार 
रंग - बिरंगी तितली देखो
पंख फेलाली बारम्बार 
नाचत - गावत आई बहार !
मोर - मोरनी  भी एसे  नाचे  
जेसे हो प्रणय को तैयार 
थिरक - थिरक अब हर कोई देता 
अपने होने का  आगाज़
नाचत गावत आई बहार !
हर कोई अपने घर से निकला
करने अपना साज़ - श्रृंगार 
सबका मन पंछी बन डोला 
मस्त गगन मै फिर एक बार 
नाचत -  गावत आई बहार !
चिड़िया असमान मै नाचे 
तितली गाए गीत मल्हार 
मै तो इक टक एसे देखूं 
जेसे मैं हूँ   कोई चित्रकार 

माँ सरस्वती


                                 सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों मै से एक है ! ऋग्वेद मै देवी सरस्वती नदी की देवी थी ! इस नदी को भी सरस्वती नदी के नाम से ही पुकारा जाता है ! सरस्वती को साहित्य , कला और संगीत की देवी के नाम से जाना जाता है ! इनमे विचार , भावना और संवेदना का समन्वय है ! वेसे इन्हें शिक्षा की देवी के नाम से ही जाना जाता है और इसी वजह से इनकी पूजा भी की जाती है ! बसंत पंचमी के दिन को  सरस्वती देवी  के जन्म दिन के रूप मै मनाया जाता है ! शिक्षा की गरिमा को समझने के लिए माँ सरस्वती के नाम का सहारा लिया जाता है ! कहते हैं की महाकवि कालिदास और वोपदेव भी सरस्वती की उपासना के सहारे ही उच्च कोटि के विद्वान् बने थे ! उपासना की प्रक्रिया भाव विज्ञानं का महत्वपूर्ण अंग है ! श्रद्धा और तन्मयता के समन्वय से की जाने वाली पूजा ही उस शक्ति का उपहार है ! सरस्वती उपासना के सम्बन्ध मै भी ये बात बताई गई है की यदि इनकी उपासना शास्त्रीय विधि से किया जाये तो वह अन्य मानसिक उपचारों की तुलना मै बोधिक क्षमता विकसित करने मै कम नहीं बल्कि अधिक ही सफल होती हैं !
                                                       सरस्वती के एक मुख चार हाथ हैं ! मुस्कान से उल्लास और  दो हाथो से पकड़ी गई वीणा भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक मानी जाती  है ! उनके हाथ मै रखी गई पुस्तक ज्ञान और माला ईश - निष्ठां और सात्विकता का बोध करवाती है !  मयूर सोंदर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है ! इनका वाहन हंस माना जाता है और इनके हाथों मै वीणा , वेद और माला होती है ! हिन्दू कोई भी पाठ्यक्रम से पहले इनकी पूजा करते हैं !
सरस्वती वंदना ....................
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला | या शुभ्रवस्तावृता |
या वीणावरदंडमंडितकरा | या श्वेतपद्मासना ||
या ब्रह्माच्युतशंकर प्रभितिभि र्देवैः सदावंदिता |
सामांपातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||    

महान चित्रकार


                         ये हैं हमारे देश के जाने माने चित्रकार श्री नेक चंद सैनी जी जिन्होंने बिना किसी की मदद से अपने आप अपनी कला को निखारा और आज  चंडीगड़ का एक कोना इन्ही के नाम से जाना जाता है ! इनकी खुबसुरत कला ने इन्हें पदम श्री दिलवाने का भी हक अदा किया ! रॉक गार्डन  { Rock Garden } ये उस जगह का नाम है ! जहां पर इनकी खुबसूरत कलाकृतियाँ हैं जिसकी वजह से चंडीगड़ को इतनी उपलब्धि मिली औरआज इन्ही की वजह से  उसकी पहचान बड़ी  है  ! यहाँ बहुत सोची समझी और पर्यावरण को ध्यान मै रख कर बनाई  गई कला कृतियाँ हैं क्युकी यहाँ पर जो भी  चित्रकारी  की गई है वो सब बेकार चीजों के इस्तेमाल से की गई है ! एक बार सरकारी आदेश के तेहत इसे बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया था पर कुछ  लोगो की रज़ा मंदी से इसे पुन: बनाया गया ! उसके बाद  एक बार फिर से इसने अपना नया रूप दोबारा हासिल किया ! कहते हैं कुछ लोग जो  इनकी प्रसिद्धि सहन न कर पाए उनकी  वजह से ये  तोडा गया था !  आज के दिन यहीं  पर सबसे ज्यादा पर्यटक आते हैं और इसकी खूबसूरती को निहारते हैं !
    नेक चंद जी को उनकी खुबसूरत कला के लिए विदेशों मै भी खूब सराहना मिली ! उन्हें विदेश मै भी मिनी राक गार्डन बनाने के लिए भी बुलाया गया उन्होंने ख़ुशी - ख़ुशी इस काम को अंजाम दिया और इस तरह कई देशो मै अपने देश भारत की छाप छोड़ी और अपने आप को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साबित किया ! उनकी रचनाएँ चीनी मिट्टी की चीज़े , चूड़ियाँ , मिट्टी के बर्तन , टूटी सेनेटरी की चीजों अदि से बनाई गई हैं ! इन सब चीजों को ये खुद अपनी साईकिल मै जाकर इकठ्ठा करते थे और झाड़ियों मै घुस - घुस कर इन सब चीजों को इकठ्ठा करते थे और अपने नोकरी  पूरी करने के बाद शाम को  घर जाकर इन्हें बनाते थे ! कुछ लोग तो समझने लगे थे की इन्होने अपना विवेक खो दिया है पर इनकी लगन इतनी थी की इनके पास इन विषयों पर सोचने का समय ही कहाँ था ! उनके अन्दर अपने काम की इतनी लग्न थी की वो एक मजदुर की तरह भी काम करते रहें ! उनके कुछ अधिकारी मित्रों ने उन्हें प्रोत्साहित किया की ये काम एक शांति  सन्देश के रूप मै अपनी जगह बना सकता है और उन लोगों ने इनका उत्साह बनाया और साथ भी दिया  !

                              नेक चंद जो हमे प्रेरित करते ही जिन्दगी एक उत्साह का नाम है इस पर भरोसा करो ! जिंदगी मै जो भी करो पूरी निष्ठां से करो उसका अंजाम क्या होगा वो खुद सामने आ जायेगा बस तुम अपना रास्ता तय करो और आगे बड़ते चलो फिर राह कितनी भी कठिन क्यु  न हो मंजिल मिल ही जाएगी ! क्युकी उन्होंने जब ये काम किया शुरू किया था तो कभी नहीं सोचा था की उन्हें पद्म श्री से सम्मनित किया जायेगा उन्होंने तो निस्वार्थ भाव से बस अपना काम किया और उसका अंजाम उनके सामने था तो इससे यही साबित होता है की अगर आपने कुछ करने की ठान ही ली है तो अपना 100 %  मेहनत लगा दो बाक़ी भाग्य खुद फ़ेसला करेगा !