कैसा है इन्सान

बहुत खुबसूरत है ...इन्सान 
पर सिर्फ और सिर्फ 
दिखावे मै जीता है !
प्यार करता है ...इन्सान 
पर एहसास ...
कुछ भी नहीं !
बहुत बुद्धिमान है ... इन्सान 
पर सिर्फ और सिर्फ 
ओरों के हिसाब 
से ही चलता है !
बहुत मेहनती है  ...इन्सान 
पर सिर्फ और सिर्फ 
इसे गलत कामों 
मै गंवाता है !
बहुत ताक़तवर है ... इन्सान 
पर सिर्फ और सिर्फ   
दिल से ही  हार जाता है !
दोड़ता बहुत है ...इन्सान 
पर सिर्फ और सिर्फ 
मंजिल के करीब जाके 
ही  लोट आता है !
काश ...ये ... इन्सान 
कभी अपने कहने पे 
भी चला होता  तो ....
आज ये कई और 
बुलंदियों को  छुता  !
  

मासूमियत या जिम्मेदारी


                
                            कितनी मासूमियत है इनके चेहरे मै हर बात से अन्जान जेसे किसी बात  से  कोई  लेना- देना  ही  न हो और कुछ लोग इनकी  मासूमियत को क्यु कैद  करने  की बात कर रहें  हैं ! कैसे  नादाँ  है  ये  लोग जो इन पर अनजाने मै ही जुर्म  ढाने  की बात कर रहें है ! 2 दिन पहले की ही तो ये बात है मेरे एक मित्र ने मुझे बताया की उन्होंने एक समाचार पत्र मै  पड़ा की सरकार एक एसे बिल के बारे मै सोच रही है जो की महिला विकास मंत्रालय के द्वारा पास किया गया है जिसमे 12 साल  के बच्चों को सेक्स की सहमती प्रदान करने की मांग  हो ! जिससे देश मै हो रहें योन अपराधो को रोका जा सके ! मै  सोचती हूँ की जिस महिला ने इस तरह की बात सोची होगी तो क्या उसने अपने बच्चों की तरफ कभी नज़र नहीं डाली होगी की इन सबमें  उनके अपने बच्चे भी आयेंगे ? इस बिल को सभी राज्यों मै लोगों की राय लेने  के लिए भेजा गया लेकिन कहते हैं की जनता ने इसे सिरे से ख़ारिज कर दिया ! सर्वे के मुताबिक 82 % पाठकों   ने इसके खिलाफ राय भी दी ! इस प्रस्ताव को समाज शास्त्रियों और समाजिक   कार्यकर्ताओं का  भी समर्थन हासिल न हो सका ! 47  % लोगो ने साफ़  शब्दों मै कहा की इससे  देश मै गंदगी फेलने के सिवा और कुछ नहीं होगा ! क्या सोच कर ये सब प्रयोग करना चाह रहें थे ये लोग की चलो देखते  हैं क्या होता है , दुसरे देश मै भी तो ये सब प्रयोग  होते रहते हैं पर अगर हम दुसरे देश की बात करते हैं तो उसका उदहारण ये एक है !
    कुछ साल पहले  लन्दन की ही ये बात है जहां पर सेक्स की उम्र 12 -13 ही आंकी गई है ! खबर आई की 13 साल  का एक लड़का बाप बन गया ! उसकी  दोस्त बच्चे की माँ  15 साल की थी ! 4 फुट का येल्फी  अभी खुद ही बच्चा लगता है ! याल्फी से जब ये पूछा गया की वो अपनी बच्ची का खर्च केसे उठाएगा तो उसका कहना था ...इसका मतलब क्या होता है ? उसने इस बात को माना की अभी तो उसे नेप्पी  की कीमत का भी सही दाम नहीं मालूम जो  बच्चा इतनी मासूमियत से हर बात का जवाब ना... मै दे  रहा  हो वो इतनी बड़ी  जिम्मेदारी को  इतनी आसानी से  केसे निभा सकता  है ! जब दोनों से इस बारे मै खुल कर पूछा गया तो उन्होंने कहा की जब वो 12 साल की थी तभी से वो गोलियों का प्रयोग करती थी पर   एक  दिन  खाना  भूल गई   और ये हादसा हो गया ! फिर दोनों ने सिर्फ ये सोच कर की कोई मुसीबत न हो जाये और घर मै डांट न पड़े बच्चे  को जन्म  की बात सोची उसने कहा ... मैने तो एसा सोचा भी नहीं था की मै बच्चे को केसे पालूंगा ? मुझे तो जेब खर्च भी नहीं मिलता  ,  हाँ  कभी - कभी पापा 10  $  दे देते थे ! कितना मासूम सा जवाब था उसका और कुछ  लोग इस मासूमियत को खत्म कर देने मै  तुले हुए हैं !
                                         इस मामले को लेकर ब्रिटेन मै खूब बहस हुई क्युकी वहां इस तरह की  समस्याओं मै अनुपात   दर बढती जा रही थी ! उस वक़्त ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ने कहा की मुझे  इस मामले के ब्योरों की जानकारी नहीं है , लेकिन हम सब इस तरह की प्रेगनेंसी को रोकनाचाहतें  हैं ! तो इससे साफ़ जाहिर होता है की वो भी इस प्रयोग  को करके खुश नहीं हुए बल्कि  उन्हें  इसे  आजमाने से  मुसीबत का ही सामना करना पड़ा ! सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2006 मै  18  साल से कम उम्र की 39 .000  लड़कियां प्रेग्नेंट हुई ! तब वहां की सरकार ने एक और प्रयोग करने की सोची की सेक्स एजुकेशन को स्लेबस मै जोड़ दिया जाये !  और ये तो हमारे देश के लिए बहुत  अच्छी बात है की सारे प्रयोग हमारे सामने हैं हमें तो  सिर्फ गलत और सही का फ़ेसला ही करना है  ! जब  सारे प्रयोग  हमारे सामने ही हैं तो फ़ेसला भी कुछ  सोचा समझा  ही हो तो क्या बात  है !

अभिशाप भी वरदान

orissa-relief-0102.jpg जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ ... बहुत खूब कही गई है बात की जब रहना यही है तो फिर क्यु रो - रो के जिंदगी गवां दे और दूसरों के उपर  हर वक़्त इशारा करके ये कहना की उसने एसा  कहा उसने वेसा किया उससे क्या मिलेगा कुछ  भी नहीं...सिर्फ अपना दिल दुखाना और एसा सोच कर  अपने समय को बर्बाद करते रहने के सिवा कुछ  भी नहीं ! इससे तो अच्छा है की हम खुद एसा काम करें जिससे हमारे दिल को सुकूं भी मिले और किसी का भला भी हो जाये ! जहां देखो हर तरफ भ्रष्टाचार - भ्रष्टाचार का ही शोर सुन - सुन कर दिल ये सोचने को विवश हो जाता है क्या सच मै सभी एसे ही हैं क्या हमारे देश मै अच्छे लोग हैं ही नहीं ?नहीं एसा नहीं है अगर देश मै कुछ लोग सिर्फ अपने लिए जी रहें हैं तोउसी समाज मै बहुत से लोग एसे भी हैं जो अच्छे अच्छे काम  करके देश  की   इज्ज़त बनाये हुए हैं ! हमारे देश मै कई एसे संस्थान भी हैं जिनकी मदद से गरीब राज्यों  के बच्चों को खाना , कपडा आदि जरूरत का समान उपलब्ध करवाया जाता है और गरीब बच्चों को स्कूल की किताबें  और स्कूल ड्रेस का भी बंदोवस्त वही लोग करते हैं तो फिर हमारा देश हर मामले मै ख़राब केसे हो सकता है !
                     आज ही फ़ूड रिलीफ ओर्ग  के बारे मै पढ़ रही थी ये संस्था 6000 एसे गरीब  राज्यों की मदद करते हैं जो गरीबी रेखा से 
नीचे है जिनके पास कमाई का कोई साधन नहीं जेसे बाड  पीड़ित देश उड़ीसा , आन्ध्र प्रदेश  और तमिलनाडू जहां पर लोगों के पास खाने के लिए भोजन की भी उपलब्धता नहीं है वो इन राज्यों मै बच्चों के खाने पीने की व्यवस्था  साथ साथ इन स्चूलों मै बच्चों के स्कूल जाने की  व्यवस्था भी की जाती हैं   !   जिससे  देश  के  बच्चे  
आगे  बढ सकें और  अपने भविष्य को संवारने मै उन्हें मदद मिल सके ! 
तो इससे साफ़ जाहिर है की हमे अपने जीवन को दिशा देने की जरूरत है की हम क्या करना चाहते हैं अगर हम दिल मै ठान  ले तो कोई भी काम मुश्किल हो ही नहीं सकता एक बार हिम्मत से कदम आगे बड़ाने की देर है रास्ते खुद बखुद खुलते चले जाते हैं हम क्यु हर वक़्त इस बात का गुणगान करते रहें  की उसने एसा किया उसने वेसा किया एसा करने से तो उसको और बल मिलेगा की एसा करने से तो मै चर्चा मै हूँ अगर एसा नहीं करूंगा लोग
मुझे पूछेंगे भी नहीं मुझे जानेगे ही नहीं बल्कि हमे तो उस व्यक्ति 
को   उठाना चाहिए जो   देश के लिए अच्छे काम करके दुसरो को
उपर उठा रहा  हो  एसे लोगों को  प्रोत्साहित करते रहने से  उन्हें बल
मिलेगा और वो इसे और आगे ले जाने मै सफल होंगे ! क्युकी
इन्सान  हर वक़्त किसी न किसी विवाद मै घिरे रहना चाहता है
जब गलत काम करने वाले को किसी तरह की प्रतिक्रिया ही  नहीं
मिलेगी तो वो उस बात को सोचने के लिए विवश जरुर हो जायेगा 
की अब मै एसा क्या करू जिससे मै फिर से उनकी नज़रों मै
आ सकूँ  और जब गलत काम करने वाला इन्सान सोचेगा और
अपने काम को अच्छे करने वालों से जोड़ेगा तो हो सकता है वो
भी कुछ अच्छा करने के बारे मै  सोचने लगे ?


Randiya is a very poor rural          उड़ीसा ...  ये हमारे देश का एसा गरीब देश है जहां लोगों  के पास दो वक़्त का खाना भी नसीब नहीं होता पर संस्था की मदद से इन लोगों को जीने का सहारा मिल रहा है इनके अन्दर इंसानियत का जज्बा बना हुआ है की इन्सान अगर बुरा है तो उसके सीने मै  भी दिल धडकता है वो भी इंसानियत को पहचानता है ! कुछ  साल पहले तक आश्रम 300 गरीब बच्चों को भोजन वितरण करती थी पर 2007 तक कुछ अच्छे
लोगों की मदद से इसकी संख्यां 44 . ००० तक हो गई थी और आज इसकी संख्या मै यक़ीनन और इज़ाफा हुआ होगा ! तो गरीबी अगर गरीबों के लिए  अभिशाप भी है तो क्या हुआ इसे वरदान बनाने मै थोड़ी बहुत भूमिका हम और आप भी निभा ही  सकते हैं कुछ  और नहीं तो हम उन लोगों का उत्साह तो बड़ा ही सकते हैं जो इतनी मेहनत से इस काम को अंजाम देने मै पूरी तल्लीनता  से जुड़े हुए हैं ,बकि इन तक तो मिडिया भी कोई कार्यवाही   नहीं करती फिर भी बिना किसी प्रशंशा पाने के लालच के बावजूद बिना किस  स्वार्थ के ये लोग अपने काम को अंजाम दे रहें हैं क्युकी गरीबों के लिए कोई क्या कर रहा है उससे किसी को क्या मिलने वाला है वो खा रहें हैं या नहीं उससे  मिडिया को क्या मिलने वाला 
है उन्हें तो चटपटी खबरों से मतलब है जो आज की दुनिया पसंद करती है उन्होंने भी पेट पालना है भाई ?  इसमें उनका भी कोई कसूर नहीं है क्युकी वो भी उसी तरफ का रुख करती  है जहां दुनिया का रुझान होता है और यही वजह है की जहां - जहां मिडिया पहुँचती  है  उस जगह एसी हवा फेलती है की वो बढती चली जाती है और जहां ये नहीं पहुँचती  वहां किसी की नज़र ही नहीं जाती और वहां की जनता को आगे बड़ने का कोई साधन ही नही  मिलता और वहां चिंगारी तो उठती है पर वही बुझकर रह  जाती है क्युकी चिंगारी को ज्वाला   बनाने के लिए हवा भी जरुरी है !

प्यारे बच्चे

कितने प्यारे कितने न्यारे
                        दिल के सच्चे  होते बच्चे !
प्यारी - प्यारी बातें करके
                         सबके दिल को हरते बच्चे !
नन्हें  - नन्हें अपने पैरों से
                          हर आँगन मै चलते बच्चे !
हर माँ - बाप के तो ...
                          दिल की धड़कन होते बच्चे !
दादा - दादी की छत्र - छाया मै
                            पल कर बड़े होते हैं बच्चे !
अरे ...नाना - नानी के भी तो
                             लाडले ..........होते हैं बच्चे !
उन सबके बुड़ापे के ही तो
                              खेल  - खिलोने होते बच्चे !
सारी अच्छी - अच्छी  बातें भी
                                  उन से ही सीखते बच्चे !
अब मै आगे क्या - क्या बोलूं
                      क्या उनसे जुदा हो सकतें हैं बच्चे ?  
                              

संघर्ष ही जीवन


                                   जिंदगी अपने आप मै एक अजीब कहानी है ! इसके अपने कई - कई पहलूँ हैं जिसमे से होकर हमें  अक्सर गुजरना पड़ता है ! कभी इसके अनुभव बहुत कडवे होते हैं जो हमेंदर्द का एहसास देते हैं  तो कभी इतने   मीठे और  सुखद  की वो  जिन्दगी से  दूर हमे जाने ही नहीं देते ! पर वास्तविकता  यही है की सुख और दुःख दोनों हमारे जीवन  की सच्चाई है और दोनों ही पहलूँ हमें कोई न कोई सीख ही दे कर जाती है ! दोनों ही हमें जीवन मै आगे  बड़ते रहने की प्रेरणा देते रहते हैं क्युकी ये तो तय है की वक्त कभी  किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता वो तो अपनी गति से चलता ही रहता है हमें ही उसके साथ चलते रहने की लिए  कदम से कदम मिलाकर  उसकी रफ़्तार को पकडे रहना पड़ता है ! वेसे तो ये एक साधारण  सी 19 वर्ष की लड़की की एक एसी कहानी है जिसका  विश्वाश और द्रिड निश्चय  हमारे जीवन मै जीने के होंसले को बुलंद  करती है की अगर मन मै जीने की चाह और दिल मै उमंग हो तो हम अपनी मेहनत और लग्न से हर बुलदियों को छु  सकते हैं ! क्युकी हमारे होंसलें हमें वहां तक ले जाने मै पूरा - पूरा साथ देते  है !
                                                 माली (MALI) एक 19 वर्षीय बेले नर्तकी  थी जो एक कार दुर्घटना मै अपना बयाँ  हाथ गवां देती है उसका दोस्त उसे इस हालत मै देखते ही छोड़कर चला जाता है अब उसकी जिंदगी उसे वीरान लगने लगती है वो अपने आप को सँभालने की बहुत कोशिश करती है पर एक दिन हार कर अपने आप को खत्म करना चाहती है पर परिवार वाले उसे समझाते  हैं और उसे आगे बड़ने को प्रोत्साहित करतें हैं तो माली एक बार फिर से वही हिम्मत और होंसले को अपने अन्दर विकसित करती है और नए सिरे से अपनी जिन्दगी की शुरुवात  करती है की वो अब केसे लिखेगी , केसे बाल बनाएगी ,  केसे कपड़े धोएगी  ओर किस तरह से अपना खाना बनाएगी और इन सब के साथ वो अपने जीवन को फिर से एक दिशा दे पायेगी !
                               5  साल के बाद उसके अन्दर फिर से वही जोश और उमंग सर उठाने लगता है और वो एक बार फिर से उसी जोश के साथ  अपने नृत्य को जारी रखने के लिए थियटर जाती है पर तब तक वहां बहुत कुछ  बदल चुका था पर फिर भी उसके होंसले बुलंद  थे और वो  हार नहीं मान सकती थी  ! वहां उसे अपना एक हमदर्द दोस्त मिलता है  जो  उसकी मदद करने को राज़ी हो जाता है  पर उन    दिनों  2004  मे चीन में सार्स फेलने की वजह से सभी सिनेमाघर बंद हो गये थे  और वो अपने  नृत्य        का प्रदर्शन न कर पाई  पर फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी उसने अपने साथी कलाकार के साथ वो नृत्य बर्फ मै किया और उसे पसंद किया गया और उसका अपने ऊपर और बढ गया !                          
                           सितम्बर 2005 मै उसकी  मुलाकात राष्ट्रिय साइकलिंग ओलंपिक चेम्पियन जही क्सिओवेई ( zhai xiaowei ) से हुई ! जब जही 4 साल का था ट्रेक्टर से गिर गया था उस  उस दोरान उसनेअपना बायाँ पैर खो दिया था ! उस समय जब जही के पिता ने अपने 4 साल के बेटे से पूछा "   डाक्टर तुम्हारा पैर काटना चाहतें हैं क्या तुम तैयार हो ! " जही उस वक़्त इस बात को नहीं समझ सकता था वो बोला नहीं ! पिता ने फिर कहा " तुम्हें जिंदगी मै बहुत सी चुनोतियों  और कठिनाइयों को झेलना पड़ सकता है ! तुम घबराओगे तो नहीं ? जही ने पूछा ... क्या होती हैं ये कठिनाइयाँ और चुनोतियाँ ? क्या इनका स्वाद  अच्छा होता है ? उसके पिता  हँसे और उनकी आँखों से आंसूं आ गये और उन्होंने कहा " हाँ वो तुम्हारी मिट्ठी केन्डी की तरह होती है , तुम्हें सिर्फ उन्हें एक वक्त में एक  खाने की आवश्कता होती है ! " ( और इतना कहते ही पिता आंसुओं के साथ बाहर की और चले गये ! ) जही हमेशा एक आशावादी और महान विचारक की तरह खेलते रहें ! जब माली ( MALI ) ने पहली बार उससे नृत्य करने को कहा तो वो समझ नहीं पा रहें थे  की ये केसे संभव हो सकता है पर उसने विश्वास के साथ हांमी  भर दी की वो कोशिश जरुर करेगा ! जही और माली ने दिन रात मेहनत की ! इस दोरान वो बहुत बार गिरा पर फिरभी वो  उससे दुगनी ताकत से फिर से जुटा  रहा  और उनकी मेहनत एक दिन रंग ले आई !
                                माली और जही एक एसी पहली विकलांग जोड़ी थी जिसने पहली बार  सी . सी . टी . वि राष्ट्रिय नृत्य प्रतियोगिता मै भाग लिया था और लाखों  दिलों को जितने मै सफल हुई थी तो ये कहानी हमें  एक जोश और साहस से जीने की राह दिखाती  है की मंजिल कितनी भी दूर सही होंसला बनाये रखने वालों को मंजिल मिल ही जाती है ! 

प्यारी माँ


तू   ही तू ............तू   ही तू  .......तू   ही तू   
जहाँ भी देखूं बस तू   ही तू   
मुझ मे तू   ...........तुझ मे मैं
सारे जहाँ मे बस तू   ही तू   
नटखट भी तू   चंचल भी तू   
ममता भी तू   क्षमता भी तूँ 
प्यारी भी तूँ न्यारी भी तू
सारी सृष्टि मे बस तू  ही तू
तू  ही तू..............तू  ही तू.. .....तू  ही तू
ममता भी तू समता भी तू  
उसकी भी तू मेरी भी तू  
सबकी जन्मदाता भी तू
लक्ष्मी भी तू  काली भी तू 
सारे कण - कण मे समाई तू
मेरा आज तू मेरा कल भी तू
मेरी प्यारी - प्यारी माँ जो है तू !