आह



बहुत समय से युवती की व्यथा लिख रही थी !
                आज दिल ने कहा क्यु  न मर्द की आह भी लिख डालू !
 हम कहते हैं की मर्द बेवफा होता है !
                                तो क्या उनके  सीने  मै दर्द नहीं होता  ?
ओरत  तो अपने दर्द को आंसुओ से बयाँ कर देती है !
             मर्द का व्यक्तित्व  तो उसे इसकी भी इज्ज़ाज़त नहीं देता !
 कहाँ समेटता होगा वो इस दर्द को ?
                           वक्त  के साथ सबका छूटता  हुआ साथ !
किसी से कुछ भी तो नहीं कह पाता है वो ,
                  बस अपने आपको अपने मै समेटता चला जाता है !
अपनी भावनाओं  को किसी से कह भी नहीं पाता ,
              उसे भी तो सहानुभति  की जरुरत होती होगी न ?
फिर वो बेवफा केसे हो सकता है ?
                       हमारा प्यार जब उसे हिम्मत दे सकता है !
तो वही प्यार उसे मरहम क्यु  नहीं ?

बेबसी




लोग रूठ जाते हैं मुझसे ,
और मुझे मनाना नहीं आता |
मैं चाहती  हूँ क्या ,
मुझे बताना  नहीं आता |
आँसुओं को पीना पुरानी आदत है ,
मुझे  आंसू बहाना नहीं आता |
लोग कहते हैं मेरा दिल है पत्थर का 
इसलिए इसको पिघलाना नहीं आता |
अब क्या कहूँ मैं...
क्या आता है, क्या नहीं आता |
बस मुझे मौसम की तरह ,
बार - बार बदल जाना नहीं आता | 
अब क्या करे कीससे कहें हम ,
हमें तो किसी को मनाना भी नहीं आता |

संघर्ष की लड़ाई


                          
           एक बीज बड़ते हुए कभी आवाज़ नहीं करता ,
   मगर एक पेड़ जब गिरता है तो
               जबरदस्त शोर  और प्रचार के साथ
 इसलिए विनाश में  शोर है परन्तु ,
                सृजन हमेशा मौन  रहकर समृद्धि पाता है |
                                      
                                     आज लड़कियां तितली बन कर  खुले  आसमान मै उड़ रही है , बुलंदियों को छु रहीं हैं | लड़कियों का संसार कुछ  वर्ग में  अब पहले जैसा  नहीं रहा | भारत के गाँव , शहरों  और महानगरों सब जगह वो अपने होने का सबूत  दे रहीं हैं | अब उनकी आँखों में  नई तरह के सपने  हैं , नई तरह की चुनोतियाँ हैं | वो अपने होने को रच रहीं हैं | लड़कियां बदल रही हैं तो समाज भी खुद को बदल रहा है पर दोनों के बदलाव में  जमीं आसमान का अंतर है | क्युकी हर इन्सान की सोच फिर चाहे वो लड़का हो या लड़की अलग - अलग है और उसी सोच के आधार पर उसकी तुलना भी हो रही है | अगर आज नारियों ने इन बुलंदियों को हासिल  किया है तो इसका  श्रेय उसकी मेहनत , लगन और  द्रिड निश्चय को  जाता है | इन्सान द्वारा  किया गया उसका गलत इस्तेमाल उसकी संकुचित सोच ने उसका इस्तेमाल अलग - अलग ढंग से किया | किसी ने उसे एसे जंजीरों में  जकड़ा की वो उसे तोड़ने के लिए अमादा हो गई , किसी ने उसकी भावनाओ को इतनी ठेस  पहुंचाई की वह टूट गई | इन सब का  हश्र ये हुआ की उसने अपनी मंजिल तलाशनी  शुरू कर दी और अपनी लगन , मेहनत और हिम्मत से अपने  आत्मसम्मान  की रक्षा करने की ठान ली | आज वो अपना संसार खुद चुन रही है | उसके अपने दोस्त अपने रिश्ते हैं | आज वह अकेली रहने में  भी नहीं घबराती उसे अपनी पहचान पर फक्र है | कुछ  अच्छे इंसानों की सोच जब खुद हिम्मत दे कर उन्हें उपर  उठाती है  तो  उनके विचार कुछ  अलग तरह की क्रांति लाते हैं और जो नारी सताए जाने के बाद ऊपर उठती है तो उसमे नफरत , आक्रोश और घमंड  होना स्वभाविक है | क्युकी ये तो तय है की हम इन्सान में  जितने पहरे , बंदिशे लगायेंगे वो बहुत लम्बे समय तक उन में  बंधा नहीं रह पायेगा और उससे बाहर निकलने को छटपटाता रहेगा और जहां जंजीरे नहीं होंगी तो  फिर वो किसे तोड़ कर  भागना  चाहेगा क्युकी वो तो पहले से ही आज़ाद है |
                                          यही वजह है अगर आज लड़कियों में  इतनी हिम्मत आई है तो ये वही जंजीरों की वजह से जिसने हमेशा  अलग - अलग तरह से उसे बांधने  की कोशिश की और उसने उतनी ही हिम्मत से उसे तोड़ डाला | उसे जितनी ताक़त से रोकने की कोशिश की गई उसने दुगनी ताकत से उन दहलीजों को लांघना शुरू कर दिया और  सभी अपनी बुलंद सोच से इतिहास के पन्नो में  अपना नाम रचने लगी | अब उन्हें वापस  लाना बहुत कठिन है  पर प्यार और होंसला उन्हें गलत राह में  जाने से जरुर रोक सकता है , क्युकी........ये उनके अपने संघर्ष की लड़ाई है और ये संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक वो अपनी एक जगह न बना ले | अगर एक वर्ग में औरत  की तस्वीर बदली है तो एक वर्ग अभी भी एसा है जो दर्द , तिरस्कार  और उन जंजीरों को अभी भी झेल रहा है | और वो दिन दूर नहीं जब ये आग हर तरफ दिखाई देगी  | अगर हम नारी को प्यार ....... सम्मान और इज्ज़त न देंगे तो ये एक दिन एक भयंकर बारूद  का रूप धारण कर सकती है और जिसका भुगतान हम सब को करना  पड़ सकता है | क्युकी जो स्थान उसका था जैसे  घर परिवार को संभालना , बच्चों को प्यार देना परिवार को जोड़ कर रखना वो ख़ाली होता जायेगा और उसको कोई भी न भर पायेगा क्युकी जितना समर्पण नारी शक्ति में  है शायद किसी में  नहीं !  इसलिय जरूरी यही है  की हम उसकी भावनाओं को समझे उसे  जंजीरों न बांध कर उसे प्यार और सम्मान दे कर   हर काम करने  का मौका दें ,  उसे समाज में  बराबर का हक प्रदान करें जिससे वो अपने कर्तव्य को बखूबी निभा पाए | आज जो ये लड़ाई लड़ रही है उससे रोकना बहुत कठिन है क्युकी इसके अनुपात में  दिन - प्रतिदिन इजाफा ही हो रहा है |
                                     देश में  1951 तक 8 .86 % महिलाएं ही पढ़ी  लिखी थीं और 1961 में  ये बढकर 15 .33 % हुई | 1971  तक ये बढकर 21 .97 % हुई और 1981 की जनगणना   के मुताबिक 28 .47 % तक पहुँच गई | 2001 में   संम्पन जनगणना के मुताबिक 53 .7 % हिस्सा आज पढ़ने  लिखने के काबिल बन गया था | हालाँकि साक्षरता शिक्षा  का पैमाना नहीं होता फिर भी शिक्षित होने के लिए वांछित आवश्कता तो है ही | देखने वाली बात की 2001 तक देश के कुल स्नातकों में  एक तिहाई महिलाएं थी और संभवतया स्थिति आज और बेहतर ही हुई होगी |
                  आजादी जीने की  ,
         आजादी ख़ुशी को इज़हार करने की |
                    क्युकी वो जान गई है ,
        की आजादी है तो कुछ  भी असंभव नहीं
                   बिना डर बिना बहकावे ,
                 पुरानी परम्परा को सँभालते  हुए
          ये लड़कियां भारत की नई इबारत लिख रहीं हैं |