जय भारत

 
आओ गुंचे - गुंचे में आज
फिर से फूल हम खिला दें |
लायें ऐसी क्रांति कि हर तरफ
आग हम लगा दें |
उठ खड़े हो जाओ जो इस देश
का  दिल में अरमान हो  |
बच्चे , बूढ़े और नारी का भी
इसमें  योगदान हो |
देश में फैले इस गर्द को
गर हम हटाना है चाहते  ,
तो सिर्फ शोर ही काफी नहीं
इसे तो अंजाम तक पहुंचाना  है |
हाथ से हाथ थामकर जो हम
आगे बढते जायेंगे |
रोक ले राह  में कोई हमें
तो उसे भी अंजाम तक पहुचायेंगे |
देश में रहकर जब देश में
पल रहे गद्दार हों ,
तो कैसे करदे माफ , जो अपने ही
वतन कि ले रहा आन हो |
आओ आज ही हम
अपने दिलों में ये ठान लें ,
न लेंगे हम चैन जबतक
 देश में गद्दार हों |
सीखा दो उनको भी हुनर
जिससे देश का नाम न बदनाम हो |
वो भी हम संग ये कह उठे कि ...
मेरा देश सदा महान हो |
जय हिंद !

13 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

I appreciate for your beautiful poem...nice... Excellent....Minakshi ji

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी कविता है। सोचपूर्ण
बहुत बहुत शुभकामनाएं

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति

Sunil Kumar ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति आभार .......

बेनामी ने कहा…

bahut acchi soch hai aapki agr aap jaise soch sabki ho jaye to duniya pata nhi kahan hogi minakshi ji

Jyoti Mishra ने कहा…

Brilliant post..
Thoughtful and with strong emotions !!

Dr Varsha Singh ने कहा…

सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

Rahul Paliwal ने कहा…

एक क्रांति और जरुरी हैं.

Dorothy ने कहा…

खूबसूरत एवं सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

ज्योति सिंह ने कहा…

bahut badhiya likha hai aapne ,jai hind .