कैसा हो सृजन


किसकी आँखों में सपना नहीं |
किसके आँखों में गीत नहीं |
कौन  से हैं वो होंठ जो मुस्कुराना न चाहें |
सब जीवन को ढोह रहें हैं |
सबका जीवन एक बोझ है |
चलते भी कहाँ हैं ...
समझो की खुद को घसीट रहें हैं |
आँखों में आसुओं के सिवा कुछ भी नहीं |
हर तरफ संताप ही संताप |
पैरों  में जैसे बेड़ियाँ सी पड़ी हों |
और राजनेता ...
इन्हीं से अपना धन्दा कर रहें हैं |
फिर सृजन कैसे संभव हो |
सृजन तो स्वतंत्र विचार मांगता है |
जिसमें कुछ नया गढ़ा जा सके |
सबकी आँखों में सपना सज़ा सके |
हरेक के दिलों में खुशियाँ  ला सके |
सब बंधन को तोड़ आज़ाद घूम सके |
और सृजन की नई परिभाषा लिख सके |

9 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

अपने भावो को बहुत सुंदरता से तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है.

मनोज कुमार ने कहा…

सृजन तो स्वतंत्र विचार मांगता है |
जिसमें कुछ नया गढ़ा जा सके |
सबकी आँखों में सपना सज़ा सके |
हरेक के दिलों में खुशियाँ ला सके |
सब बंधन को तोड़ आज़ाद घूम सके |
और सृजन की नई परिभाषा लिख सके |
बिल्कुल सही कहा है, सृजन के लिए स्वतंत्र विचार ज़रूरी है।

केवल राम ने कहा…

सृजन तो स्वतंत्र विचार मांगता है |
जिसमें कुछ नया गढ़ा जा सके |
सबकी आँखों में सपना सज़ा सके |
हरेक के दिलों में खुशियाँ ला सके |

सृजन के सन्दर्भ में आपके द्वारा अभिव्यक्त की गयी सोच बहुत सशक्त है ....आपका आभार

Rahul Singh ने कहा…

जीवन की नई परिभाषा प्रतीक्षित.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन का आवारापन नयी परिभाषायें गढ़ता है।

Dr Varsha Singh ने कहा…

सृजन तो स्वतंत्र विचार मांगता है .....

सही कहा आपने।
सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई।

hamarivani ने कहा…

अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

Rakesh Kumar ने कहा…

जो अज्ञान में जीते हैं ,वे ही जीवन को ढोते हैं
जो यह जाने कि जीवन ईश्वर का अनमोल उपहार हैं ,वे तो इसे सजायेगें,खुशियाँ मनाएंगे और नित नए सर्जन से जगत को भी महकायेंगें.
आपकी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति के लिए आभार.

Santosh Pidhauli ने कहा…

बहुत खूब सुन्दर पोस्ट के लिए
बधाई ......