एक टीस दिल में उतर गया है अंदर,
देखी नहीं जाती यह बदहाली हमसे…
ऐ वक्त तू दिखा दे -
जो भी तुझको दिखाना है
हम भी जिद्द पर अड़े है कि |
लड़ाई चलेगी लंबी न जाने कबतक ,
जो तुम सोचते हो कि -
खून देश का है ठंडा हो चूका
ये तुम्हारी भूल है ...फिर न खाना तुम एसा धोखा ...
जो तुम समझते हो कि -
यहाँ अब न रहे लड़ने वाले ,
तो हम बता दें तुम्हें कि -
हमारी अच्छाई हमारी कमजोरी नहीं -
लिए शोले दिल में हम घूमते हैं अब भी |
आग जलेगी तुम्हें खाक में मिलाने तक … ।
वतन को तोड़ने वालों की साँसें
हम चलने दें , हैं तभी तक ,
पर तुम्हें लगने लगा है कि तुम बन शासक
हमें नेस्तनाबूत कर हो सकते |
खड़े हो रहे हैं देखो नौजवां हमारे ,
लड़ने को, तुम्हारी सत्ता हटाने तक… ।
क्या सोच तुम आए थे कि हिन्द का
खून पानी-पानी है,
क्या तुम ने मान लिया कि अब यहाँ ...
इस देश में न रहा कोई सानी है,
बहुत कर ली तुमने मनमानी
ऐ वतन के दुश्मनों |
ऐ वतन के दुश्मनों |
अब बहुत वक्त गुज़र गया -
हिन्द ने अब ये ठानी है
इस बार करेंगे घमासान ,
इस बार करेंगे घमासान ,
तुम्हारा वजूद मिटाने तक … ।
2 टिप्पणियां:
ऐ वतन के दुश्मनों |
अब बहुत वक्त गुज़र गया -
हिन्द ने अब ये ठानी है
इस बार करेंगे घमासान ,
तुम्हारा वजूद मिटाने तक …
बहुत ही अच्छी भावनाओं को कविता में उकेरा है आपने.
सादर
यही उत्साह बना रहे देश का।
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