होंसलों की उड़ान


                  " तुम्हारे साथ रहकर , अक्सर मुझे एहसास हुआ है |
                   की हम असमर्थताओं से नहीं , संम्भावनाओं से घिरें हैं ||
                   हर दीवार में द्वार बन सकता है , और हर द्वार में ,
                             पूरा का पूरा पहाड़ गुजर सकता है || "
                                             सुधा चंद्रन भरतनाट्यम नृत्य में अपनी एक खास पहचान  बनाने वाली एक एसी  नारी का नाम है जिसने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की इन पंक्तियों को अपनी मेहनत और लगन से  साकार बना दिया | गंभीर घटना में अपना पैर गँवा देने के बाद , ठीक से खड़ा हो पाना भी मुश्किल था , लेकिन ये बात उन लोगो पर लागु होती है जो थोड़ी सी विपत्ति आने पर अपनी हिम्मत खो देते हैं और खुद को दुसरे के सहारे बिना सोचे समझे छोड़ देते हैं , जिन्हें अपने भविष्य पर और खुद  पर  यकीं नहीं होता लेकिन ये बात सुधा चंद्रन और इनके जैसी हिम्मत रखने वाली नारी पर  कोई प्रभाव नहीं छोड़ता  वो वक़्त से लड़ना जानती है उसे  ओरों से ज्यादा खुद पर यकीं होता है उसे अपनी बाजुओं की ताक़त पर यकीं होता है | 1981 में एक दुर्घटना के बाद डाक्टरों की लापरवाही से गेंगरिन की शिकार होने और अंतत: उसकी वजह से अपना एक पैर गँवा देने के बावजूद सुधा चंद्रन ने हार नहीं मानी | उन्होंने तोड़ कर रख देने वाली इस घटना  को नियति मान कर संतोष नहीं किया बल्कि अपनी हिम्मत और जज्बे की बदौलत सिर्फ दो साल के भीतर ही नृत्य की दुनिया में वापस लौट कर अपनी हिम्मत का परिचय देकर लोगो को अपनी कला से अभिभूत कर दिया | सुधा की इस प्रेरणादायी
कहानी पर 1984 में तेलगु में मयूरी नाम से फिल्म बनी | इसके दो साल बाद 1986 में में ' नाचे मयूरी ' के नाम से हिंदी रीमेक भी बना , जिसके लिए नेशनल फिल्म अवार्ड्स में ज्यूरी का विशेष परुस्कार भी मिला |
                               उन्होंने डांस के साथ - साथ कई फिल्मों , टीवी धारावाहिकों में भी अभिनय किया है | सुधा कई देशों में अपनी डांस परफोर्मेंस दे चुकी हैं और कई पुरुस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं | एकता कपूर के धरावाहिक ' कहीं किसी रोज़ ' में उन्होंने रमोला सिकंद की भूमिका निभाई | इस रोल ने इन्हें इनकी पहचान और आसन बना दी और अपने होंसलों की उडान को जारी रखते हुए ये अपनी कामयाबी का परचम लहराती  गई | ' तुम्हारी दिशा ' सीरियल के लिए 2005 में इन्हें सर्वश्रेष्ठ खलनायिका का पुरस्कार  भी प्राप्त हुआ | सुधा जी की ये कहानी सिर्फ अक्षम लोगों के लिए ही नहीं है बल्कि ये सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा दायक है जो थोड़ी सी मुसीबत आ जाने पर खुद को असहाय नाकारा समझने की गलती कर बैठते हैं | ये इस बात की एक मिसाल है की हिम्मत लगन और द्रिड निश्चय से हम किसी परेशानी को खत्म  कर सकते हैं और किसी पर बोझ न बन कर अपने आत्म सम्मान की रक्षा बहुत खूबसूरती से कर सकते हैं | मैं आज उनकी हिम्मत और जज्बे को सलाम करती हूँ |
             जिंदगी तो रोज़ एक नया ख्वाब दिखाती  है | 
          जीने की तमन्ना ही न तो , इसमें उसका क्या कुसूर ||  

3 टिप्‍पणियां:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

सुधा चंद्रन जी प्रेरणास्रोत है , जिन्दगी जीने की ..

उनका ज़ज्बा और साहस प्रणम्य है |

Rahul Singh ने कहा…

वाह क्‍या बात है, रोज एक नया ख्‍वाब.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुधाचन्द्रन का जीवन प्रेरक है।