क्रांति ही जीवन

      मनुष्य हर वक़्त  विवादों में घिरे रहना पसंद करता है क्युकी यही उसे आगे बड़ने की राह दिखाती है अगर वो एसा  न करे तो आगे का सफ़र उसके लिए मुश्किल हो जाता है | मानव का स्वभाव  ही कुछ  एसा  है की वो जितनी भी मेहनत करता है तो उसके पीछे  उसका अपना स्वार्थ होता  है  उसका अंदाज अलग हो सकता है पर  लक्ष्य सिर्फ एक की मुझे ख़ुशी कैसे मिलेगी ?  क्या करने से मिलेगी ? हम सब  इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं पर इस सत्य को अपनाने से इंकार करते हैं | जीवन में हम जितनी मेहनत करते हैं  हमें  सिर्फ वही वापस मिलता है लेकिन फिर भी हम किसी दुसरे का सहारा खोजते रहते हैं की शायद वो हमसे बेहतर हमारे लिए कर सकेगा | कहने का तात्पर्य यह है की जब सब कुछ  हमारे करने पर ही निर्भर  है तो फिर क्यु  न खुद आगे बड़  कर उसे अंजाम तक पहुचाया जाये |                            
                                                   अब राजनीति को ही ले लो जो कहती है की भविष्य में इकिसवीं सदी लानी है वो खुद यहाँ नहीं है तो इकिसवीं  सदी तो बहुत दूर की बात है जिनका आधार ही दूसरों  की मेहनत पर टिका हो वो हमे आगे कहाँ तक ले जायेंगे | हर नेता किसी न किसी ज्योतिष , महात्मा को अपना गुरु बनाये बैठा है जिसे अपने भविष्य की खबर नहीं वो हमारा भविष्य कैसे  सवार सकता है | जिसका सारा वक़्त अपने आप को सुरक्षित रखने में ही बीत जाता हो वो हमारी सुरक्षा का इंतजाम कैसे  जुटा पायेगी | उनका सारा समय अपने २ स्वार्थ  के लिए खींचा - तानी में ही बीत जाता है उनके लिए जनता के लिए समय निकल पाना कैसे  संभव हो सकता है हमें  तो इनकी इस मेहनत पर तरस खाना चाहिए की इतनी मेहनत के बाद भी कुछ  को ही सफलता मिल पाती है और हम हैं की ये सब  जानते हुए भी बार २ अपने भविष्य की बाग़ डोर इनके हाथों  में थाम देते हैं | जब ये तय है की मनुष्य सिर्फ अपने लिए ही जीता है तो फिर बार २ ये गलती क्यु करे मेहनत तो वो खुद करते हैं और उसका इनाम दुसरे  को सोंप देते हैं | हमे तो गर्व होना चाहिए की हमारी वजह से उनका जीवन इतना सुखमय व्यतीत  हो रहा है | राजनीति तो ऐसा  खेल है की जो इन्सान को कभी मिलकर रहने ही नहीं  दे सकती  वो सिर्फ और सिर्फ तोड़ सकती है उसका काम इन्सान को इन्सान से अलग करना है न की जोड़ना | वो धर्मो को कभी एक जुट रहने ही नहीं दे सकती उनका काम है इंसानों को धर्मो  में बाँटना और उनके बीच  में दूरियां  पैदा करना क्युकी अगर वो ऐसा  नहीं करते हैं तो हमारा विश्वास कैसे  जीत पाएंगे और अगर हमसब एक हो गए तो  शिकायत कीससे  होगी और फिर नेताओं  का क्या  काम तब तो हमारा अपना फैसला  और अपना जीवन होगा | राजनीति मनुष्य  को कभी विकसित होते देख ही नहीं सकती क्युकी जितना मनुष्य विकसित होगा , उतना ही उसे गुलाम बनाना मुश्किल हो जायेगा उतना ही उसे स्वतंत्र  होने से रोकना मुश्किल हो जायेगा | जरुरत सिर्फ अपने आप को   समझने की है की मैं  क्या हु और क्या चाहता हु जब मैं  हु तभी तो धर्म  है | हर धर्म  इन्सान को मिलकर रहने की बात कहता है  तो फिर आज देश में इतना शोर क्यु  मचा हुआ है लोग एक दुसरे को मार रहे हैं और दुहाई धर्म  की दे रहे हैं  तो ये कौन   सा धर्म  है जो ऐसा  करने की इज़ाज़त दे रहा है और हर घर हर रोज मातम मना  रहा है और इसे खेलने वाला बेखबर बैठा है , तो किस काम की वो राजनीति जिसके हाथ में इतने भरोसे से हम अपना जीवन सोंप देते हैं और समय आने पर वो हमारी रक्षा भी नहीं कर पाती | इनसब बातों  से तो इसमें इन सबका अपना ही स्वार्थ साफ़ -  साफ़ नज़र आता है | जब हम सब जानतें  है तो क्यु  न हम अपना जीवन अपने भरोसे जी कर देखे और  अपने जीवन को अपने आप खुबसूरत बनाये | 
                                                  स्वतंत्रता  एक क्रांति का नाम है वो हमे भविष्य में आगे ले जा सकती है क्रांति  तभी संभव  हो सकती है जब हम पुराने को छोड़ कर नए को अपनाने की  हिम्मत  कर सके पर ये सब  करना हमारे लिए बहुत मुश्किल काम है पर असंभव नहीं | इसका कारण  ये है की हम पुराने से अच्छी तरह से वाकिफ होते हैं और हम उसके अच्छे बुरे से भली भांति परिचित होते हैं इसलिए बार २ उसी तरफ बढ जाते हैं बेशक उससे हमे कितनी भी तकलीफ क्यु  न हो रही हो क्युकी  हमे उसकी आदत जो पड़ गई है |  नए को अपनाने में हमे घबराहट होती है क्युकी उसके बारे में हम कुछ  नहीं जानते इसलिए उसे अपनाने की  हिम्मत  ही  नहीं जुटा पाते और वही घिसी - पीटी  जिंदगी जीते चले जाते हैं और उसी में संतोष करते रहते हैं | जबकि संतोष में सुख नहीं बल्कि सुखी इन्सान में संतोष होता है | इसलिए हमें  अगर जीवन में क्रांति लानी है तो हमे पुराने का त्याग करके नए को धारण करना ही होगा |     
                                                  

7 टिप्‍पणियां:

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

sach kaha aapne, aapse sahmat hoon

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

sundar vachan ...

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेशक पुराने को छोड़ कर नए को अपनाने की आवश्यकता है विशेष रूप से राजनीति और क़ानून और कई क्षेत्रों में.क्रान्ति का अर्थ ही नए विचारों और बदलावों को अपनाना है इसे आपने बखूबी स्पष्ट किया है.

सादर
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मैं नेता हूँ

Minakshi Pant ने कहा…

शुक्रिया दोस्तों !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत पसन्द आया
bilkul sach......sehmat hoon

Minakshi Pant ने कहा…

shukriya sanjay ji

विक्की निम्बल ने कहा…

aapka mere blog pr pdharne ka hardik dhanyawad pant ji.