संसार हमारी प्रतिध्वनी

   हम जेसा चाहते हैं वेसे अपना जीवन बना सकते हैं ! जीवन के बन्धनों से अगर हमे आजाद होना है तो हमे अपने आपको बदलना होगा न की संबंधो को तोडना ! जो अपने आपको बदलने को तैयार  हो जाता है वही जीवन की सचाई को जान पता है की जीवन कितना सुन्दर, कितना रसपुरण और कितना अजीब संगीत से भरा हुआ है पर इन सबको देखने के लिए सुन्दर सोच और महसूस करने के लिए प्यारा सा दिल होना जरुरी है आजतक हमने इसे बंधन ही माना है  क्युकी हमने इसे इसके अन्दाज में कभी जिया ही नहीं हम तो   वो सब करते गए जो दुसरो ने हमसे चाहा क्या गलत है और क्या सही इस तक तो हम कभी पहुंचे ही नहीं बस इसे बोझे  की तरह ढोते चले गए और किसी भी पहलु को ठीक  से समझ ही नहीं पाए  हम , इसलिए अगर जीवन के संगीत का अनद लेना है तो हमे उसके हर संगीत को बड़े धयान से सुनना और समझना होगा !
                                   एक बार दुसरे देश के लोग हमारे देश में घुमने के लिए आये घूमते २ जब वो थक गए तो उन्हें भूख लगी ,तो वो  सब  एक फल वाले के पास गए उन्होंने नारियल देखा तो उन्हें वो थोडा अलग सा फल लगा उन्होंने उसके बारे में पुच्छा तो फल वाले ने उस की बहुत तारीफ की इसमें बहोत प्रोटीन होता है और खाने में भी बहुत  सवाद होता है एसा सुन कर उन सबने उसे खरीद लिया पर उससे तो वो बिलकुल अनजान थे की उसे किस तरह से खोल कर खाया जाता है ! आगे चल कर उन्होंने उसे खाना चाहा पर उसके बारे में कोई जानकारी न हो पाने की वजह से वो उसे खोल न सके ओर सवाद का मज़ा भी न ले सके तो उन्होंने उस फल वाले को बहुत भला बुरा कहा और अपने देश में जाकर भी सभी से उसकी खूब बुराई  करी की इतने बेकार फल को वो लोग इतने प्यार से खाते हैं हमे तो उसमे कोई अच्छाई  नजर नहीं आई और उसने हमे उसकी इतनी खुबिया बता दी थी तो डीक  उसी तरह हमारा जीवन भी नारियल की ही तरह है जो इसको जीने का ढंग नहीं जान पाते उनके लिए वो नारियल के बाहरी  भाग जेसा कढोर और बेसवाद ही लगता है और जब हम इसे भोगने की विधि जान जाते हैं तो यही हमे मीठा  सव्दिष्ट और मोक्ष प्राप्त करने जेसा प्रतीत होने लगता है! पर हमारे जीवन की असफलता उस फल को न चख पाने का बंधन बनती जाती है और उसको न चख पाने की देरी हमे जीवन तोड़ देने के लिए बाध्य कर देती है !
                                                            संसार तो हमारे तरीकों से चलता है हम उसे जेसा रूप सरूप देते हैं वो वेसा ही दीखने लग जाता है! तभी हम कहते भी हैं की संसार एक बंधन है , संसार दुख है  इसे तोड़ दो पर इससे भाग कर कहाँ तक जायेंगे इससे बेहतर तो यही होगा की हम अपने आप को ही बदल डाले इससे हमे ये संसार एक सगीत सा नज़र आने लग जाये और इसके सुख दुःख इसके मधुर गीतों जेसे लगने लगे !    

खुदा

तेरी रहमत का मुझको कोई गिला नहीं है ये खुदा !
तेरे अंदाजे ब्यान के तो कायल हैं हम सभी पर  !
तेरे इतने करीब होके भी तुझसे इतने दूर क्यु हैं हम !
तेरी इस हसीं अदा से आज भी वाकिफ क्यु नहीं है हम !
ये जानते हुए की सब कुच्छ तेरे रहमो कर्म पे है !
फिर क्यु  आपस में ही  लड़ झगड़ रहे हैं हम !
इसका एहसास तू सबको करा दे ये मेरे मालिक !
तेरे ही बनाये बन्दों में अकाल की थोड़ी कमी सी क्यु है 

मंजिल

जानते नहीं थे अभी तक अपनी मंजिल का पता हम !
घर से निकले तो रास्तो ने मिन्जिल का पता बता दिया !
अब लोट कर तो  न आना चाहते थे हम वापस ये दोस्त !
पर रिश्तो के दर्द ने हमे फिर से अपने  पास बुला लिया !
ये जिंदगी क्यों रंग देखती रहती  है तू हर पल मुझको !
क्या आजकल  तुझसे भी मेरी ये ख़ुशी देखि नहीं जाती !
अब  तो तू बख्श  दे मुझको मेरे हाल पे ये  मेरे  सनम !
न जाने किस मोड़  पर जिंदगी की शाम ढल जाये !
न आ पाएंगे फिर तेरी आगोश में लोट कर के हम !
इतना   तो करम करदे मुझे बख्श दे सनम !

 

सम्पूर्ण मनुष्य




अपने जीवन के अभी तक के सफ़र में मैने पाया की एक इन्सान में वो सारी खुबिया मोजुद हैं जो वो दुसरो में देख कर खुश होता है !तभी तो इसे महसूस भी करता है ओर उस जेसा बनने की कोशिश भी करता है ! इसके बावजूद हर इन्सान ने न चाहते हुए भी अपनी एक सीमा तय कर रखी है ! उसने अपने अन्दर से सिर्फ उसी खूबी को बहार आने दिया है जिसका जवाब वो आसानी से दे सके , और उस बारे में उससे कोई सवाल न उठा सके ! बाकि सभी खूबियों  को वो अपने अन्दर ही समेटे हुए है उसका आनद तो लेना चाहता है पर कुच्छ समाज के डर और कुच्छ अपने वेक्तित्व के डर से उसे दुसरो के सामने प्रकट नहीं होने देता ! कयोकी वह इसके अंजाम से अच्छी तरह वाकिफ हैं पर उसकी चाहत इन्सान को चेन से रहने भी नहीं देती और वो इस संसार रूपी भीड़ में उसे तलाशता रहता है !किसी एसे इन्सान को जो उसकी भावनाओ को समझ सके उसकी हिम्मत  को बड़ा सके और उसे उसकी मंजिल तक पहुचने में उसकी मदद कर सके जिससे उसका सफ़र आसन हो जाये !    
किस  इन्सान का सफ़र किसे कहाँ तक लेकर जाता है ये कह पाना थोडा मुश्किल ही है क्युकी सबकी तलाश का विषये अलग_अलग है !जिंदगी का सफ़र तब तक चलता रहता है जब तक हमारा जीवन चल रहा है ! हर इन्सान हर दिन एक नई सोच ले कर जगता है जीवन जीने के लिए एसा होना जरुरी भी है अगर एसा नहीं होगा तो जीवन बेजान सी हो जाएगी उसकी जिंदगी में रंगों को होना बहुत जरुरी है वही सब तो हमारे जीवन को रगों से भरती है और हमारा जीवन सरल बना देती है 
किसी शायर ने बहुत खूब कहा है :::::: जिंदगी जिन्दा दिली का नाम है , मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं !
,