इंतजार


तितली सा मन बावरा उड़ने लगा आकाश ,
सतरंगी सपने बुने मोरपंखी सी चाह !
आमंत्रित करने लगे फिर से नये गुनाह ,
सोंधी सोंधी हर सुबह , भीनी भीनी शाम !
महकी सी मेरी सुबह और बहकी बहकी धूप ,
दर्पण मै न समां  रहे ये रंग बिरंगे रूप !
जाने फिर क्यु  धुप से हुए गुलाबी गाल ,
रही खनकती चूड़िया रही लरजती रात !
आँखे खिड़की पर टिके दरवाजे पर कान ,
इस विरह की रात का अब तो करो निदान !
सिमटी सी नादां कली आई गाव से खूब ,
शहर मै खोजती फिरती अपने सईयाँ का प्यार !
आँखों मै छपने  लगे विरह गीतों के गान ,
बाहर से कुच्छ न बोलती बाहर हास परिहास !

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