आह

बहुत समय से युवती की व्यथा लिख रही थी !
आज दिल ने कहा क्यु  न मर्द की आह भी लिख डालू !
 हम कहते हैं की मर्द बेवफा होता है !
तो क्या उनके  सीने  मै दर्द नहीं होता है ?
ओरत तो अपने दर्द को आंसुओ से बयाँ कर देती है !
मर्द का व्यक्तितव तो उसे इसकी भी इज्ज़ाज़त नहीं देता !
 कहाँ समेटता होगा वो इस दर्द को ?
वकत के साथ साथ सबका  छुटता हुआ साथ !
किसी से कुछ भी तो नहीं कह पाता है वो ,
बस अपने आपको अपने मै समेटता चला जाता है !
अपनी भावनाओ को किसी से कह भी नहीं पाता
उसे भी तो सहानुभूति , प्यार की जरुरत होती होगी न
फिर वो बेवफा केसे हो सकता है ?
हमारा प्यार जब उसे हिम्मत दे सकता है
तो वही प्यार उसे मरहम क्यु  नहीं ?

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