माँ का दुलारा

माँ माँ के इस क्रंदन ने ,
हर माँ को आज जगाया है !
मत रो माँ के दुलारे तू ,
तेरे सर पे तो हर माँ का साया है !
तू क्यु इस कदर बैचेन हो जाता है ,
ये तो सब उसका ही नियम बनाया है !
जो इस धरती  पर आता है ,
उसको तो इक दिन जाना है !
माँ शब्द ही एसा निराला है ,
जो सबके मन को भाता है !
फिर तुम इससे केसे बचते ,
और अपनी बात न फिर कहते !
माँ ने तो अपना फ़र्ज़ अदा किया ,
तेरे हाथो मै देश को सोंप दिया !
अब तुने फ़र्ज़ निभाना है ,
उसका बेटा बन दिखलाना है !
फिर उसकी ही गोदी मै बैठकर ,
अपना ये दर्द मिटाना है !
और हर माँ की दुवाओ को  ,
अपनी ताक़त फिर से बनाना है !

1 टिप्पणी:

Krishna Baraskar ने कहा…

bahut achha likha hai anomol shabd "Maa" ke bare me..
par ek beshahaara balak ke man ki shankaaye mitana bahut kathin hota hai..