प्रसिद्ध हिडिम्बा देवी मंदिर

    Hidimba Devi Temple   हिमाचल प्रदेश में  लकड़ी से बने हजारों साल पुराने विभिन्न देवी -देवताओं  के बहुत  से मंदिर आज भी पर्यटकों एवं श्रद्धालुओ के आकर्षण का केंद्र हैं | इन्ही मै से एक है  - "हिडिम्बा मंदिर" जो हिमाचल का गोरव माना जाता है |
                                महाभारत के भीम का विवाह हिडिम्ब राक्षस की बहन हिडिम्बा से हुआ था | भीम और हिडिम्बा के संयोग से उत्पन पुत्र घटोत्कच महाभारत युद्ध में  पांड्वो की और से अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ था | महाभारत में जैसे  की वर्णन मिलता है , अपने आहार की खोज में  निकले हिडिम्ब राक्षस का भीम के साथ भीषण द्वन्द होता है और अंत मै भीम हिडिम्ब को मार देता है | इस घटना से दुखी हिडिम्ब की बहन हिडिम्बा कुंती समेत पांड्वो पर आक्रमण करना चाहती है किन्तु भीम का सरूप देख कर मोहित हो जाती है | अंत में  माता कुंती की अनुमति से उसकी शादी भीम से हो जाती है | इस एकाकिनी- युवती ने आत्मनिर्भरता के आदर्श को निभाते हुए पुत्र घटोत्कच का पालन - पोषण किया और समय आने पर कुरुक्षेत्र के मैदान में  प्राणोत्सर्ग के लिए उदार मन से बेटे को भेज दिया | यह है एक आदर्श भारतीय नारी का उदाहरण "नारी तू नारायणी है " और " या देवी सर्व भूतेशु मात्रिरुपेन संस्थिता " के पवित्र सन्देश को आदर्श बनाकर हिमाचल -वासियों ने हिडिम्बा को अपनी श्रद्धा -आदर से देवी का परम पद प्रदान किया और इस हिडिम्बा मंदिर मै उसको प्रतिष्ठापित किया है | कुल्लू का राजवंश हिडिम्बा को कुलदेवी मानता है | ऐसा  माना जाता है की १५५३ इ. स. में  कुल्लू के महाराजा बहादुर सिह ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था |
                                                            समुन्द्र  तल से १२२० मीटर की ऊंचाई पर स्थित कुल्लू से मनाली की दुरी ४० किलोमीटर है | मनाली शहर से एक किलोमीटर की दुरी डूंगरी स्थान पर यह हिडिम्बा मंदिर अपने विशिष्ट काष्ठ के अद्भुत शिल्प शोभा के साथ विराजमान है | ४० मीटर ऊँचे इस हिडिम्बा मंदिर का आकर शंकु जैसा  है | उपर तीन झत वर्गाकार है और चौथी  झत  शंकु आकर की है जिस पर पीतल चारो और से लगा है | मंदिर के गर्भ ग्रह  में  विशाल शिला है , जिसमे से शरीर - भाग का आकर , देवी के विग्रह का साक्षात् प्रतिमान है |
                                                                                     वैसे  तो हिमालय माँ पार्वती  के जनक हैं पित्रचरण  और कैलाश  उनका पतिगृह है , यानि यह हिमाद्री क्षेत्र भगवती दुर्गा का लीला स्थल है | अत: यहाँ के कण - कण मै शक्ति चेतना भरी पड़ी है | इस विशेष सन्दर्भ में  यहाँ के निवासियों की परम्परा भी अद्भुत है की कुल्लू के विश्व - प्रसिद्ध दशहरा की नयनाभिराम , देवी - देवतओं  की शोभा यात्रा तब तक आरम्भ नहीं होती , जब तक की इस पूरी शोभा यात्रा के नेतृत्व के लिए हिडिम्बा - देवी का रथ सबसे आगे तैयार न हो जाये |
                                                                       जय माता की | आप् सबको नवरात्री कीबहुत - बहुत शुभकामनायें दोस्तों | :)                                                                                                                                                                                        




3 टिप्‍पणियां:

Krishna Baraskar ने कहा…

Bahut hi achha likha aapne badhai

बेनामी ने कहा…

gud dear

बेनामी ने कहा…

bahoot achaa laga aap ko Harimba temple Jaroor la k jaoon ga Gun Prakash