मंजिल

जानते नहीं थे अभी तक अपनी मंजिल का पता हम !
घर से निकले तो रास्तो ने मिन्जिल का पता बता दिया !
अब लोट कर तो  न आना चाहते थे हम वापस ये दोस्त !
पर रिश्तो के दर्द ने हमे फिर से अपने  पास बुला लिया !
ये जिंदगी क्यों रंग देखती रहती  है तू हर पल मुझको !
क्या आजकल  तुझसे भी मेरी ये ख़ुशी देखि नहीं जाती !
अब  तो तू बख्श  दे मुझको मेरे हाल पे ये  मेरे  सनम !
न जाने किस मोड़  पर जिंदगी की शाम ढल जाये !
न आ पाएंगे फिर तेरी आगोश में लोट कर के हम !
इतना   तो करम करदे मुझे बख्श दे सनम !

 

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