सम्पूर्ण मनुष्य




अपने जीवन के अभी तक के सफ़र में मैने पाया की एक इन्सान में वो सारी खुबिया मोजुद हैं जो वो दुसरो में देख कर खुश होता है !तभी तो इसे महसूस भी करता है ओर उस जेसा बनने की कोशिश भी करता है ! इसके बावजूद हर इन्सान ने न चाहते हुए भी अपनी एक सीमा तय कर रखी है ! उसने अपने अन्दर से सिर्फ उसी खूबी को बहार आने दिया है जिसका जवाब वो आसानी से दे सके , और उस बारे में उससे कोई सवाल न उठा सके ! बाकि सभी खूबियों  को वो अपने अन्दर ही समेटे हुए है उसका आनद तो लेना चाहता है पर कुच्छ समाज के डर और कुच्छ अपने वेक्तित्व के डर से उसे दुसरो के सामने प्रकट नहीं होने देता ! कयोकी वह इसके अंजाम से अच्छी तरह वाकिफ हैं पर उसकी चाहत इन्सान को चेन से रहने भी नहीं देती और वो इस संसार रूपी भीड़ में उसे तलाशता रहता है !किसी एसे इन्सान को जो उसकी भावनाओ को समझ सके उसकी हिम्मत  को बड़ा सके और उसे उसकी मंजिल तक पहुचने में उसकी मदद कर सके जिससे उसका सफ़र आसन हो जाये !    
किस  इन्सान का सफ़र किसे कहाँ तक लेकर जाता है ये कह पाना थोडा मुश्किल ही है क्युकी सबकी तलाश का विषये अलग_अलग है !जिंदगी का सफ़र तब तक चलता रहता है जब तक हमारा जीवन चल रहा है ! हर इन्सान हर दिन एक नई सोच ले कर जगता है जीवन जीने के लिए एसा होना जरुरी भी है अगर एसा नहीं होगा तो जीवन बेजान सी हो जाएगी उसकी जिंदगी में रंगों को होना बहुत जरुरी है वही सब तो हमारे जीवन को रगों से भरती है और हमारा जीवन सरल बना देती है 
किसी शायर ने बहुत खूब कहा है :::::: जिंदगी जिन्दा दिली का नाम है , मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं !
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